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किशनसिंह-कृत क्रियाकोष रिषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन वंदिए, सुमति, सुपारस, शीतल मन आनदिए। श्री श्रेयांस जिनंद पाय पूजत सही, विसपति दोष नसाय यही आगम कही ॥८३ सुबुधनाथ पद पूजित शुक्र नसाय है, मुनिसुव्रत कों नमत दोष शनि जाय है। नेमनाथ पद वंदत राहु रहै नहीं, मल्लि रू पारस भजत केतु भजिहै सही ।।८४
जनम लगन के समै कूर ग्रह जो परे, अथवा गोचर मांहि अशुभ जे अनुसरै। तिनि तिनि ग्रह के काजि पूजि जिनकी कही, जाप करे जिन नाम लिए दुष है नहीं ॥८५
नवग्रह सांतिह काज जिनेश्वर सों मणी, घडो होय सिरनाय करै सो थुति घणी । वार एक सो आठ जाप तिनको जपै, ग्रह नक्षत्र की बात कर्म बहुविधि खपे ॥८६ भद्रबाहु इम कही तासु ऊपरि भणी, जो पूरब विद्यानुवाद श्रुति ते मणी। इह नवग्रह शान्ति बखाणो जेन में, करिवि श्लोक अनुसार किसनसिंध पै नमैं ॥८७ आन धरम के माहि उपाय इम कहत हैं, विपरोत बद्धि उपाय न मारग लहत हैं। चंडारनि के दान दियाँ है शुद्धता, कल्प्यो एम विपरोत ठाणि मति मुग्धता ॥८८ चंद दोय दोय रवि दोय जिनागम में कहै, मेरु सुदरसन गिरिद सदा फिर लेत है। शशि विमान तल राहु एक योजन वहै, रवि के नीचें केतु एम भमतो रहें ।।८९ पखि अंधियारे मांहि कला शशि की सही, एक दबावति जाय अमावस लों कही। शुकल पक्ष इक कला उघरती है, पूरणमासी दिन शशि निरमल थाय है ।।९०
नित्यहि ग्रह को मिलन इहां होय न सबै, पूज्यूं विन विपरीति राहु उलटे जावे । देवे शशि जब दान ग्रहण जब ठान ही, जिन मत में सो दान कबहूँ न बखानहीं ॥९१
रवि शशि चारयों तणौ ग्रहण चतुंजानियो, ऐरावत अरु भरत मांहि परमानियो। छठे महीने अंतर पड़े आकाश में, फेरि चाल कू लहै दबावै तास में ॥९२ तिह विमान की छाया अवर न मानिए, जिन मारग के सूत्रनि एक बखानिए। भरत माहिं एक ऐरावत में भी सही, इक ऐरावत माहि भरत तिहुँही लही ।।९३ भरत माहि ऐरावत चहूँ में ना कहीं, ऐरावत हे च्यारि भरत पै ए नहीं। दोय दोय दुहुँ थान होय तो नहिं मनें, इह ग्रहण की रीत अनादि थकी बने ॥९४ .
उक्तं च गाथा त्रैलोक्यसारे नेमिचन्द-सिद्धान्ति-कृते । राहु अरिद्वविमाणं किंचूणा कि पि जोयणं अधोगता। छम्मासे पावन्ते चन्द रवि छादयदि कमेण ॥९५
चालछन्द ससि राहु केतु रवि जाण, आछादह है जु विमान । विपरीत चाल षट् मास, पावत है जब आकास ।।९६ चारथो सुर पद के धार, तिह के कछु नहिं व्यापार । देणो लेहणो को करि है, फिरि है जोजन अंतर है ॥९७ चहूँ को मिलिवो नहीं कबही, निज थानकि साहिब सबही । औरनि की दीयो दान, लहैणी नहीं उतरे आन ॥९८ शशि राहु चाल इक बारी, शशि बढ़े धटै निरधारी। षटमास बिना लहि दावे, रवि को नहि केतु दबावे ।।९९
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