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श्रावकाचार संग्रह मरयादा ऐसी को छांड, और भांति करवा नहिं मांड। मो जिन आगम भाखी रीत, सो करिए नित मन धर प्रीत ॥१५
कुंडलिया सूतक क्षत्री गेह पंच वासर कह्यो, ब्राह्मण गेह मझारि दिवस दस ही लह्यो। अहो रात्रि दस दोय वैश्य घर जाणिये, सब सूद्रनि के सूतक पाप बखानिये ॥१६ ऋतुवंती तिय प्रथम दिवस चंडालणी, ब्रह्मघातिका दिवस दूसरा में भणी । त्रितिय दिवस के यांहि निदिसम रजकणी,
बासर चोथे स्नान क्रियासों सुध भणी ॥१७ जाके घर में नारि अधिक है दुष्टणी, जाकै किरिया हीण सदा पूरब भणी। व्यभिचारणि पर-पुरुष रमण मति है सदा,
ताके घर को सूतक निकर्म नहि कदा ॥१८
सोरठा को कवि कहै बनाय, ताके अवगण को कथन । प्रायश्चित न समाय, जिहि दिन दिन खोटी क्रिया ॥१९
कुंडलिया अरु जाकै घर त्रिया दया व्रत पालनी, सत्य वचन मुख कहै अदत्तहिं टालिनी। ब्रह्मचर्य को धरै सती सब जन कहै, पतिबरता पति भक्ति रूप नित ही रहै ॥२० जिनवर की सो पूज करै नित भाव सों, पात्रनि को दे दान महा उच्छाह सों। सूतक पातक ताके घर नहिं पाइये, प्रायश्चित तिय तिहि को केम बताइये ॥२१
दोहा इह सूतक वरनन कियो, मूलाचार प्रमान । तिह अनुसार जु चालिहै, ता सम और न जान ॥२२
सोरठा भाषा कोनी सार, जो मत संशय ऊपजै । देखो मूलाचार, मन संशयो भाजे सही ॥२३
इति सूतक विधि अथ तमाखू भांग निषेध वर्णनम्
चाल छन्द सुनियै बुध जन कलिकाल, प्रगटी हीणी दोय चाल । इक प्रथम तमाखू जानो, दूजी बिजियाहि बखानो ॥२४ सुनिलेहु तमाख दोष, अदया कारण अघ कोष । निपजन की विधि है जैसें, परगट भाषत हौं तैसें ।।२५
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