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________________ १९५ किशनसिंह-कृत क्रियाकोष परिजन पुरजन न्योति जिमाय, यथाशक्ति इम शोक मिटाय । अरु परिजण सूतक की बात, सूतक विधि में कही विख्यात ॥९९ ता अनुसार करे भवि जीव, हीण क्रिया को तजो सदीव ।। इह विधि जैनी क्रिया करेय, अवर कुक्रिया सबहि तजेय ॥१३०० अथ सूतक-विधि लिख्यते । उक्तं च मूलाचार उपरि भाषा त्रोदक छन्द इम सूतक देव जिनिन्द कहै, उतपत्ति विनास वि भेद लहै । जन में दस बासर को गनिए, मरिहै जब बारह को भनिए ॥१ कुल में दिन पंच लगी कहिये, जिन पूजन द्रव्य चढ़े नहि ये । परसूत भई जिह गेह मही, वह गाम भलो दिन तीस नहीं ॥२ चौपाई चेरी महिषी घोड़ी गाय, ए घर में परसूतिज थाय । इनको सूतक इक दिन होय, घर बारे सूतक नहिं कोय ।।३ महिषी क्षीर पक्ष इक गए, गाय दूध दिन दस गत भये । छेली आठ दिवस परमाण, पाछे पय सबको सुध जाण ।।४ जनम तणो सूतक इह होय, मरण तणौ सुनिये अब लोय । दिन बारह इह सूतक ठानि, पीढ़ी तीनि लगै इक जानि ॥५ चौथी साखि दिवस दस आय, पंचम पीढ़ी षट दिन जाय । षष्ठी साखि चार दिन कहे, साख सातमी तिहु दिन रहे ॥६ अष्टम साखि अहो निसि सोग, नवमी जामहि दोय नियोग। दसमी हीन मात्रही जाणि, सूतक गोत्रनि गहे बखाणि ॥७ करि संन्यास मरे जो कोय, अथवा रण में जूझ सोय । देशांतर में छोडै प्रान, वालक तीस दिवस लों जान ।।८ एक दिवस इनको ह सोग, आगे अवर सुनो भवि लोग। पौढ़ो बालक दासी दास, अरु पुत्री सूतक सम भास ॥९ दिवस तीन लों कह्यों बखान, इसकी मरयादा में जान । बनिता गरभ पतन जो होय, जितना मास तणी थिति सोय ॥१० जितने दिन को सूतक सही, पीछे स्नान शुद्धता लही। पति का मोह थकी तिय जरे, अथवा अपघातक जु करे ।।११ अरु निज परि मरि है जो कोय, इन तिनहूँ की हत्या होय । पखवारा सूतक ता तणों, आगे अवर विशेष जो भणों ॥१२ जाके घर के असन रु नीर, खाय न पोवै बुद्ध गहीर । अरु श्री जिन चैत्यालय मही, द्रव्य न चढे रु आवै नहीं ॥१३ बीति जाय जब ही छह मास, जिन पूजा उच्छव परकास । जामैं पंच तासु के गेह, जाति मांहि तब आवै जेह ॥१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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