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किशनसिंह-कृत क्रियाकोष
चौपाई
जात्री दूर दूर का घणा, आवे पार्यान में तिह तणा । जीव बद्ध करि तास चढ़ाय, निहचेते नरकहि जाय ||६६ कामदेव हणमन्त कुमार, विद्याधर कुल में अवतार । तीर्थंकर बिनु जग नर जिते, तिह-सम रूपवान नहि तिते ||६७ बन्दरवंशी खगपति जान, घुजा मांहिं कपि चिह्न बखान । माता अंजनी जाकी जानी, पवनंजय तसु पिता बखानी ॥ ६८ दादी खगपति नृप प्रहलाद, जैनधर्म घरि चित अहलाद । पाले देव गुरु श्रुत ठीक, महाशीलधारी तहकीक ॥६९ हणुकुमार दीक्षा घरि सार, मोक्ष गये सुख लहै अपार । ताको भाषै कपि को रूप, ते पापी पड़िहें भवकूप ॥७० आनमती सों कछु न बसाय, जैनी जन सों कहुं समझाय । जिनमारग में भाष्यों यथा, तिह अनुसार चलौ सरवथा ॥७१ गंगा नदी महा सिरदार, जाको जल पवित्र अधिकार । जिन पषाल पूजा तिह थाकी, करिये जिन आगम में बकी ॥७२ जैन श्रावक नाम घराय, हाड रु लावे तिह पितु माय । धन्य जनम माने जग आप, गंगा घाले माय रू बाप ॥७३ आनमती परशंसा करे, तिन वच सुनि चित हरषहि धरे । मूढ़ धरम अघ भेद न लहैं, वातुल- सम जिम तिम सरदहै ॥७४ पदमद्रह हिमवन ऊपरी, ताइहतें गंगा नोकरी । विकल स जल में नहीं होय, बहुदिन रहे न उपजे वोय ॥७५ जिस पर जाय तजै ततकाल, और ठाम उपजे दरहाल ।
हाड रुलाए गंगा माहि, कैसे ताकी गति पलटाहि ॥७६ जैनी जन तिन शिक्षा एह, जैन विरुद्ध कीजे है तेह | ते करिये नहीं परम सुजान, तिम उत्तम गति लहै पयाण ॥७७
अथ जनम मरण को क्रिया को कथन
बोहा
मरण समय कीजे क्रिया, आगमते विपरीत । पोषक मिथ्यादृष्टि की, कहूँ सुनहुँ तिन रीत !!७८
चोपाई
पूरी आयु करवि जे मरे, मेल्हि सनहती ए विधि करे । चून पिण्ड का तीन कराय, सो ताके कर पास घराय ॥७९ भ्रात पुत्र पोता की बहू, घरि नालेष्ट धोक दे सहू । पान गुलाल कफन पर घरे, एम क्रिया करि ले नीसरे ॥८१
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