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श्रावकाचार
केउन के ऐसी रीति, गावै त्रिय मन धर प्रीति । गाडै चित अति हरषाई, ते ओलि हाट ले जाई ॥१३ केऊ रोटी के मांही, गाड़े के देत नखाहीं।। तामाही जीव अपार, गाढ़े सो हीणाचार ॥१४ ते अदया के अधिकारी, पावें दुरगति दुख भारी। जिनके करुना मन माहीं, ताकों दै दूरि नखाहीं ॥१५ दस दिन को हूँ जव बाल, सूरज पूजै तिह काल । लागै तसु दोष मिथ्यात, जिन मारग ए नहीं घात ॥१६ तीन्है जब न्हवण करै है, जलथानिक पूजन जैहै। जल जीवन को भंडार, एकेंद्री त्रस अधिकार ॥१७ जैनी जिनके घर मांही, संकाचित मांहि धराहीं । जलथानक जाय न दूजे, घरमाहिं परहंडी पूजे ॥१८ ताको है दोष महंत, ततक्षिण तजिए गुणवंत । दिन तीस तणो कै बाल, जिन मारग में इह चाल ॥१९ वसु दरब मनोहर लेई, चैत्याले गमन करेई । ते बालक अंक मझारी, तिह साथ चलं बहु नारी ॥२० गावै जिन गुण हरषंती, इय मंदिर जिन दरसंती। भगवंत चरण सिरनाय, पुनि नृत्य रचै बहु भाय ॥२१ बाजित विविधि के बाजे, जामों धन अंबर गाजे । जिन भाव हरखि धरि सेवै, तसु जनम सफलता लेवै ॥२२ श्रुत गुरु पूजै बहु भाई, जिनकी युति मैं मन लाई। भाषै अति उत्तम बैन, सब जन मन को सुख दैन ॥२३
दोहा जिन श्रुत गुरु पूजा पढ़े, आवे अपने गेह । यथा सकति अरथी जनहि, दान हरषतें देय ॥२४ सनमाने परिवार कों, यथायोग्य परवान । जैनी इह विध पुत्र कों, जनम महोछो ठाम ॥२५ आठ वरष लों पुत्र जो, करन पाप विस्तार । तास दोष पितु मातु को, ह है फेर न सार ॥२६ यातें सुनि निज कार मैं, राखै जे मति मान । ताहि पढ़ावै लाभ लखि, है तब विद्यावान ॥२७
अव व्याह करन की बार, किरिया जे कै अविचार । प्रथमहि जब लगन लिखावै, सज्जन दस बोस बुलावै ॥२८ चावल है जिन कर मांहीं, पूजा सब लगन कराहीं । करि तिलक बिदा तिन कीजे, मिथ्यात महा सु गिनीजे ॥२९ मांडे फिरि भीत बिनायक, कहि सिद्ध सकल सुखदायक । नर देह वदन तिरयंच, सो तो सिधि देय न रंच ॥३०
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