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श्रावकाचार मालीतणी-बाड़ी पहूंचरु फूल दो बहलें करी। हरषाय मन उछाह करती आसह ते निज धरी ।।९१ पूजे तहाँ तिह दिवस सो ले फूल दोय चढ़ाय के। पाछे बनावे हेत धरि गण-गोरि गोरि अणायके । ईश्वर महेसुर करे मूरति आँखि कोंडी की करे। देखो बड़ाई नजर इमहो चित्र की थापना धरे ।।९२
नाराच छन्द वणाय तीज कों गुणो चढ़ाई पूजि के सही। बड़ी तियारु कन्यकाइ कंत बत्त को गही ॥ करें मिठान्न भोजना अनेक हर्ष मानि है। सुहाग भाव वर्त्त नाम जोषिता बखानि है ॥९३
गीता छन्द गणगोरि की पूजा किए जो, आयु, पति की विस्तरै । तो लखहु परतछि आयु छोटी प्राय मानव क्यों मरै ।। कन्या कुँवारीपणा ही ते तास पूजा आ चहैं। बारह वरष की होय विधवा क्यों न तसुकी रक्षा करै ।।९४ साहिब तणी जा करै, सेवा दिवसि निशि मन लायकै । धिक्कार तसु साहब पणो, कछु दिना सेब कराय कै।। दायक सुहागनि विरद को गहि, सकति तसु अति हीनता। सेवा करती बाल विधवा होय लहि पद-हीनता ॥९५
तोटक छन्द सिगरी नर नारि इहै दर से, धरि मूरखता फिरि के पर से । कछु सिद्ध लहं नहिं तास थकी, तिहत तजिए तनु पूजन की ।।९६
गीता छन्द भूषन वसन पहिराय, बहुविधि अधिक तिय मिलिक गही। ले जाइ पुर से निकसि बाहर पहुंचि है जल तोर ही ।। गावे विनोद अनेक विनरी नीर में तसु डारही । अति हरष धरती हरष करती आय गेह सिधारही ॥९७
बोहा इह प्रभुता सहु देखि के, गौरी ईश महेश । वाजल में खेयतें, डर न कियो लव-लेश ॥९८ रहत सकत तिह देखिये, करिविथापना मूढ़ । महा मिथ्याती जान तिन, धारे दोष अगूढ ॥९९
सोरठा इत पूजे फल येह, कुगति अधिक फल भोगवे । यामें नहिं सन्देह, जैनी को इह योग्य नहिं ॥१२०० दुर्लभ नर भव पाय, जैन धरम आचार जुत । ताको चित बिसराय, पूज करै गण-गौरिको ॥१
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