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श्रावकाचार-संग्रह
कोई प्रश्न करे इह जाण, तीर्थंकर इक सहस प्रमाण । प्रतिमा एक बराबर कही, इह महिरहै छहरत नहीं ॥९० ताके समझावन को बैन, कहिये है अति हो सुखदैन । त्यों प्रतिमा पूजन सरधान, अति गाढ़ी राखो प्रतिमान ॥ ९१
छन्द चाल
जिन समवसरण जुत राजे, मूरत उत्कृष्ट सुछाजै । निरखत उपजै वंराग, ह्वे शान्त चित्त अनुराग ॥९२ परतक्ष तिष्ट भगवान, समवादि सरन-जुत थान । पेखत हुलास बढ़ावं, भविजन हिरदय न समावै ॥९३ तिनकी वाणी सुनि जीव, तरिहै भव उदधि अतीव । जिनवर जब मोक्ष लहाई, तब जिन प्रतिमा ठहराई ॥९४
निरखत प्रतिमा को ध्यान, बुधजन हिय उपजै ज्ञान । तिनकों निमित्त भविजीव, जग में लहिहै जु सदीव ॥९५ प्रतिमा आकृति लखि धीर, उपजे वैराग गहीर । मन वीतरागता आनं, तप व्रत संयम को ठानें ॥९६ दरसन प्रतिमा निरधार, भविजन को नित उपगार । जिन मारम धरम बढ़ावे, महिमा नहि पार न पावे ॥ ९७ जे प्रतिमा दरशन करिहै, पूरव संचित अब हरिहै । कहिये का अधिक बखान, दायक भविजन सिरथान ॥ ९८ ऐसी प्रतिमा जुत होई, भविजन निश् चित सोई । मन वच क्रम धरिहै ध्यान, ज्यों ह्वं सव विधि कल्यान ॥ ९९ को पूछे फिर येह, कहु साखि ग्रन्थ को जेह ।
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तिनको उत्तर ये जानी, सुनियो तुम कहूँ बखानी ॥ ११०० साधर्मीद्विज सुखधाम, सहदेव नाम अभिराम ।
पूरब दिशि सेती आयो, सो सांगानेर कहायो ॥ १ पढ़ियो जो ग्रन्थ अनेक जिन मत धरे चतुर विवेक । गाथाबंध सततरि हजार, महाघवल ग्रन्थ अतिसार (२ तिहको टीका मुखदाई, लख साढ़ा तीन कहाई । ते श्लोक संस्कृत सारै, तिन कंठ भलीविधि धारे ॥ ३ तिह कथन कियो सव पाहों, महाधवल थकी मुकहांहीं । ताकी लखि बा परतीत, पूछो जिनमत बहुरीत ॥४ जिनी सांकरी विधि सेती, आगम प्रमाण कहि तेती । जैनी पंडित जु बखानी, परतखि ए भवि प्रानी ॥५ प्रतिमा दरसन सम लोक-मधि अवर न दूजो थोक । प्रतिमा पूजा जे कारक, ते होइ करम ते फारक ॥६
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