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किशनसिंह कृत क्रियाकोष
चौपाई गूजर, जाट, अहीर, किसान, खैती सोंचे निर निरवान । हलबाहै त्रस को है घात, कहुं वह श्रावक पद किम पात ॥७५ पवे अहाव प्रजापति गेह, अगनि निरंतर बालत तेह । होत घात सब जीवनि तनी, तिनकों कैसे श्रावक भनी ॥७६ अवर हीन कुल है अवतार, ढंढ्या मत चाले निरधार । मदिरा पीवे आमिष भखे, धरम पलति तिनके किम अखे ॥७७ विण्या बिन बीधो जो नाज, घृत गुल लूण तेल बहु साज । होय घात त्रस जीव अपारं, तिनकों श्रावक कहै गवार ॥७८ हीन करम करि पेट जु भरे, तिनपे कहुं करुणा किम परे । जैसी जात हीन निज तणी, मानें आप साध पद भणी ॥७९ तैसे ही श्रावक तिन तणे, कुकरम पाप उपावे घणे । ऐसे मत को सांचो गिणे, ते पापी इम आगम भणे ॥८०
दोहा
सांचे झूठे मत तणी, करिवि परीक्षा सार। सांचो लखि हिरदय धरो, झूटो दीजे टार ॥८१
अथ श्री प्रतिमा जी की महिमा वर्णन
दोहा श्री जिनवर प्रतिमा तणी, महिमा जो अतिसार । सुन्यो जिनागम में कथन, मति वरण्यो निरधार ।।८२
चौपाई मिथ्यादृष्टी एक हजार, तिनकी जो महिमा निरधार । एक मिथ्याती जैनाभास, सबही सरभर करे न तास ।।८३ जैनाभास सहस इक जोई, तिन सबही की प्रभुता होई। सम्यक दृष्टी एक प्रमाण, तिसहि बराबर ते नहिं जान ।।८४ सम्यग्दृष्टी गिनहु हजार, एक अणु-व्रत धारो सार । महिमा गिनहु बराबर सही, इह जिन मारग मांहे कही ॥८५ देशवती इक सहस सुजान, मुनि प्रमत्त गुणथान प्रमाण । एक बराबर महिमा धार, आगे सुनहु कथन विस्तार ॥८६ मुनि प्रमत्तधर एक हजार, तिनको जो प्रभुत्व विस्तार । इक सामान केवली सही, होय बराबर संशय नहीं ।।८७ ह्व सामान्य केवली तेह, महिमा एक सहस्र की जेह । समवसरन धारी जिन देव, तीर्थंकर इकसम गिणि एव ।।८८ परतखि समवसरण जुत होय, तीर्थकर पद धारी सोय । एक हजार प्रमाण बखान, एक प्रतिमा समानता ठान ।।८९
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