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________________ पावकाचार-संग्रह घरि बांधे राखे तिन सही, हरयो पास तिन नीरे नहीं। सूको पास करव खाखलो, पालो इत्यादिक जो भलो ॥८६ ले राखै इतनों घर मांहि, दोष-रहित नहिं जिय उपजांहिं । नीरे झाड़ि उपरि जो वीर, अरु विधि तें जो छांण्यो नीर ॥८७ पीवे वासन धातु-मझार, सरद न राखै माजे मार । इंधन कुंडि बाल तो जाय, रांधि कांकडा खली जु मिलाय ॥८८ खीर चरमूं विरिया जेह, देव खवाय जतन तें तेह। स्याले तापर जूठ डराय, जतन करै जिम जीव न थाय ॥८९ छन्द चाल जब महिषी गाय दुहावै, जल तें कर थनहिं धुवावै । कपड़ो चरई-मुख राखै, दोहत पय तापर नाखै ॥९० ततकाल सु अनि चढ़ावै, लकड़ी वालिर औंटावै । सखरी जामण जहं होई, तह दधि करै नहिं सोई ॥९१ पय करणे की जो ठाम, सीलो करि है पय ताम । भाजन जु भरत का मांही, जामन दे वेग जमाहीं ॥९२ जामण की जु विधि सारी, भाखी गुण-मूल मझारी । वैसे ही जामण दीजै, वहै टालिन और गहीजे ॥९३ इह प्रात तणी विधि जाणूं, अब सांझ तणी सु बखाने । सब किरिया जानों वाही, इह विधि सुध दही जमाही ।।९४ जांवणीय वरणे की जागें, तह हाथ न सखरो लागे । सो भी विधि कहहँ बखाणी, सुणिज्यो सब भविजन प्राणी ॥९५ खिड़की इक जुदी रहाही, तिह धारि किवाड़ जड़ाही। प्रात जबे दधि आनी, मथि है सो मेलि मथानी ॥९६ सो सगली किरिया भाखी, गोरस-विधि आगे आखी। लूण्यो निकले ततकाल, औटावै सो दरहाल ॥९७ वासण में छानि धराही, हे खरच जितौ ढकवाहीं। कहां वरत, कहां सुद्ध भाय, घृत गृही सोधि को खाय ॥९८ ऐसो घृत लौवे वालो, अन्तराय सुनीति प्रतिपालो । यह कथन कियो सब सांच, यामें न अलीकी बाँच ॥९९ ऐसी विधि निपजें नाहीं, गांवन तें हूँ न मंगाही। माखन लूणी वह राई, घृत खाय सु देय दताई ॥१००० विधि वाही जेम सुल्यावै, किरिया जुत ताहिं जमावै । दधि छांछ धिरत पय लूनी, विधि कही करिय न वि ऊनी ॥१ निज घर जो घृत निपजाहीं, व्रत धरि श्रावक सो खाहीं । कर छुबै न माली व्यास, हिंसा त्रस है नहिं तास ॥२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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