________________
१७२
श्रावकाचार-सग्रह
सरद रहै तिनमें अति सदा, अस उपजै जिनवर यों वदा। हिन्दु तुरक तंबोली जान, नीर निरन्तर जिन छिटकान ॥२३ जल भाजन अशुद्ध अति जान, सारा नर मूतें तिह थान । पूँगी लौंग गरु गिरी बिदाम, डोड़ादिक पुनि लावै ताम ॥२४ चूनौं क्वाथ इत्यादि मिलाहिं, सबै मसालो पाननि माहि । धरकै बीड़ा बाँधै सोय, सब जन खात खुशी मन होय ॥२५ धरम पाप नहिं भेद लहन्त, ते ऐसे बीड़ा जुग हन्त ।। अरु उत्पत्ति क्वाथ की सुनों, अघ-दायक अति है तिम गुणों ॥२६
क्वाथ (कथा) की उत्पत्ति बिन्ध्याचल तह भील रहन्त, खैर रूख की छाल गहन्त ।
औंटावें निज पानो डार, अरुण होय तब लेय उतार ॥२७ तामें चून जु मंडवा तणों, तन्दुल ज्वार सिंघाड़ा तणों। नाख खैर जल-मांही जोय, रांध रावड़ी गाढी सोय ॥२८ ताहि सुखावें कुंडा मांहिं, उत्पति क्वाथ कहि सके नाहिं । कहूँ कहा लौं बारंवार, होय पाप लख करि निरधार ॥२९ सुख-दायक सिख गहिये नीर, दुखद पापकी छांडयो धोर । छांडें मन वच सुख सो लहै, बिनु छांडें दुर्गति को गहै ॥३० तातें सब वरणन इह कियो, सुनहु भविक जन दे निज हियो । जिह्वा-लंपटता दुखकार, संवरते सुरपद है सार ॥३१
दोहा
व्रत धारी जे पुरुष हैं, अवर क्रिया-धर जेह । तजहु वस्तु जो हीण है, त्यों सुख लहो अछेह ॥३२ अथ वरनोडी खोचला कूरेडी फली हरी वर्णन
चौपाई क्रियावान श्रावक है जेह, वस्तु इती नहिं खैहैं तेह । रांधै चून वाजरा तणों, और ज्वारि चावलकों भणों ॥३३ वरनोडी रु खीचला करै, कूरेडी फूलै हरि धरै ।। भाटै शुद्र सुखावें खाट, सीला वट वायौं सुनि राट ॥३४ इह विधि वस्तु नीपजै सोई, ताहि तजो व्रत धरि अब लोई । अरु ले जाइ रसोई मांहिं, सेक तलें क्रिया तस जांहिं ॥३५ ___अथ भड़भूज्यां के चबणों सिकावें ताका कथन भड़भूज्यो सेंकै जो धान, तास क्रिया सुनिये मतिमान । रांधा चांवल देय सुखाय, तस चिवड़ा मुरमुरा बनाय ।।३६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org