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किशन सिंह-कृत क्रियाकोष
अथ और वस्तु है तिनकी उत्पत्ति वगैरे कथन । अथ गोंद को उत्पत्ति
बोहा
गूद हलद अरु आँवला, निपजन विधि जे थाहि । क्रियावान पुरुषनि प्रतें, कहूँ सकल समझाहि ॥ १०
चौपाई
गू ंद खैरकॅ लागो होय, भील उतार लेतु हैं सोय । अरु अंगुली लार लगाय, इह विधि गूंद उतारत जाय ॥११ कड़ी माछर आहि अतीव, लागा रहे गूंद के जीव ।
to विवेकहीन अति दुष्ट, करुणा-रहित उतारें भ्रष्ट ॥१२ दूना में धरते सो जाय, जीव कलेवर तामें आय ।
इह विधि जाण लेहु जन दक्ष, नर-नारी सब खात प्रतक्ष ॥१३ भील जूठ यह जाणों सही, क्रियावान नर खावे नहीं । जो है सो क्रिया नसाय, अवर वरतकों दोष लगाय ॥१४
अथ अफीम की उत्पत्ति
अरु उतपत्ति अफीम जु तणी, जूठी दोष गूं दहि जिम भणी । इह अफीम में दोष अपार, खाये प्राण तजै निरधार ॥१५ अथ हल्दी की उत्पत्ति
हलद भील निज भाजन - मांहि, अपने जलतें ते औंटाहि । ता पीछें सो दें सुखाय, हलद बिके ते सब ही खाय ॥ १६ कन्दमूलतें उपज्यो सोय, भाजन भील नीरमें जोय । यामें है इतनी लखि दोष, धरम भ्रष्ट शुभ क्रिया न पोष ॥ १७ आंवला को उत्पत्ति
वरडि मांझ आँवला अपार, हीण क्रिया तामें अधिकार । हरयो आँबला भील लहाय, अपने भाजन मांहि डराय ॥१८ निज पाणीमें ले लौटाय, जमीं मांहि फिर डारें जाय । पहरि पाहनी तिन पर फिरें, फूटत तिन गुठरी नीसरें ॥ १९ अरु भीलन के बालक ताम, तिनकी गुठली बीनत जाय । लूण साथि ले खाते जाहिं, झूठ होत तामें सक नांहि ॥२० जल भाजनको दोष लहन्त, पाटा पाहनी से खूदन्त । ऐसी उत्पत्ति बुध जन जान, धर्म फले सोई मन आन ॥२१ अथ पान को उत्पत्ति
काथ खात हैं पार्नाह मांहि, तिसके दोष कहे ना जाँहि । प्रथम पान साधारण जान, राखै मास वरसलों आन ॥२२
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