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श्रावकाचार-संग्रह
तिहि निसि भोजन तजन वरत सेठणि पै लियो,
मन वच क्रम व्रत पालि मरण शुभ भावनि कियो ॥
वह सेठ तिया उरि ऊपनि सुता नागश्रिय जानिये ।
जिन कथित धर्म विधि जुत गहिवि सुंरग तणा सुख तिन लिये ॥९९ तिरयग एक सियाल सुणिचि मुनि-कथित धरम पर, रख निसि भोजन तजन वरत दियो लखि भविवर । त्रिविध शुद्ध व्रत पालि सेठ सुत है प्रीतिकर, विविध भोग भोगए नृपति-पुत्री परणवि वर ॥ मुनिराज पास दीक्षा लई, उग्र घोर तप ध्यान सजि । वसु कर्म क्षेपि पहुंचे मुकति, सुख अनन्त लहि जगत महि ॥१०० याही व्रतको घारि पूर्व ही बहुत पुरुष तिय, तद्-भव सुर पद है त्रिविध पालिउ हरषित हिय । अनुक्रम मोक्षहि गये धरिसु दीक्षा जिनि धारी, सुख अनन्त नहि पार, सिद्ध पदके जे धारी ॥ नर-नारी अजहुं व्रत पालि हैं मन वच काय त्रिशुद्धि कर । हि धर्म देवगतिका अधिक, क्रम तें पहुँचें मुकति वर ॥१ इति अणथमी कथन ।
अथ दर्शन-ज्ञान-चारित्र-कथन
बोहा
त्रेपन किरिया के विर्षे, दरसण ज्ञान प्रमाण ।
अवर त्रितय चारित तणों, कछु इक कहों बखाण ॥२
निज आतम अवलोकिये, इह दर्शन परधान । तस गुण जाणपणों विविध, वहै ज्ञान परवान ॥३ तामें थिरता रूप रहे सु चारित होय । रत्नत्रय निश्चय यहै, मुकति - बीज है सोय ॥४
अब विवहार बखाणिये, सप्त तत्त्व परधान । निःशंकादिक आठ गुण, जुत दर्शन सुख- दान ||५ ज्ञान अष्ट विध भाषियो, व्यंजन ऊजिति आदि ।
जिन आगम को पाठ बहु, करै त्रिविध अहलादि ॥६
पंच महाव्रत गुप्ति त्रय, समिति पंच मिलि सोय । विध तेरा चारित्र है, जाणों भविजन लोय ॥७ इनको वर्णन पूर्व ही, निश्चय अरु व्यवहार । मति प्रमाण संक्षेपते, कियो ग्रन्थ अनुसार ॥८
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चौपाई
त्रेपन किरिया की विधि सार, पालो भवि मन वच तन धार । सो सुर-नर-सुख लहि शिव लहै, इम गणधार गौतम जी कहै ॥९
इति त्रेपन क्रिया-कथन सम्पूर्ण ।
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