________________
श्रावकाचार-संग्रह
अडिल्ल
कालान्तर तजि प्राण भयो घूघू जबे, तहाँ मरण लहि सोई नरक गयो तबै । पंच प्रकार अपार लहै दुख ते सही, निकलि काक मर जाय ठई दुख की गही ॥४२ तिह वायस चउपद अनेक जु सताइया, विष्टादिक जे जीव चित्त ते पाइया । प्रचुर आयुतें पाप उपाय मूवो जदा, नरकि जाय बहु आयु समुद भुगतं तदा ॥४३ तिहर्ते निकसि बिलाव भयो पापी घनौ, मूसा मींढक आदि भखै कहलों गनौ । नरक जाय दुख भुंजि ग्रद्ध पक्षी भयो, प्राणी भखे अनेक नरक फिर सो गयौ ॥४४ निकसि नरकतें पाप उदै संवर भयो, तिहं भखो जोव अपार नरक पंचम गयो । निकलि सूर है जीव भखे तिनकों गिनं, अघ उपाय मरि नरक जाय सहि दुख धने ॥४५ अजगर लहि परजाय मनुष तिरयग ग्रसे, नरक जाय दुख लहे कहे वाणी इसे । निकलि वघेरो थाय जीव बहु खाइया, पाप उपाय लहाय नरक दुख पाइया ॥ ४६ गोधा तिरयग जमति निकसि तहते भयो, बहुत जंतुकों भखि नरक पुनि सो गयो । मच्छ तणो परजाय लई दुख की मही, लघु मच्छादिक खाय उपाये अघ सही ॥४७ सो पापी मरि नरक गयो अतिघोर में, स्वासति निमिष न लहै कहूं निशि भोर में । तहं भुगते दुख जीव याद जो आवही, निशि न नींद दिन नीर अशन नहि भावहीं ॥४८
चौपाई
૬૬
Jain Education International
निशि- भोजन- लंपट द्विज भयो, महापाप को भाजन थयो ।
दस भव तिरयग गति दुख लह्यो, तिम दस भव दुख नरक निसर्यो ॥४९
नरक थकी नींकलिकेँ सोई, देस नाम करहाट सुजोई।
कौसल्या नगरो नरपाल, है संग्रामसूर गुणमाल ॥५० तसु पटतिया वल्लभा नाम, राजा-सेठ श्रीधर है ताम । श्रीदत्ता भार्यां तिह तणी, राजपुरोहित लोमस भणी ॥५१ प्रोहित वनिता लाभा नाम, महोदत्त सुत उपज्यो ताम | सात विसन लंपट अधिकानी, रुद्रदत्त द्विज कोवर मानी ॥ ५२ महीदत्त कुविसनतें जास, पिता लक्ष्मी सब कियो विनास । जूवा वेश्या रमि अधिकाय, राजदंड दे निरधन थाय ॥५३ घर में इतो रह्यो नहि कोय, भोजन मिलिये हूं नहिं जोय । तब द्विज काढ़ि दियो घर थकी, गयो सोपि मामा घर तकी ॥५४ मात आदर नहि दियो, बहु अपमान तास को कियो । भाग्य होन नर जहँ, जहं जाय, तह-सहं मान हीनता थाय ॥५५ सर्वया
जा नस्के सिर टाट सदा रवि-ताय थकी दुख जोरी लहै है, पादप चील तणी तकि छांइ गये सिर चीलकी चोट सहे है। ता फलतें तसु फाटि है सीस वेदनि पाप उदे जु गहे है, भाग्य विना नर जाय जहाँ, तहं आपद थानक भरिही रहे है ॥५६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org