________________
किशनसिंह-कत क्रियाकोष उत्कृष्ट ऐलक बत धारी, जिनकी विधि भाष्यो सारी। मठ मंडप बन के माहीं, निश दिन थिरता ठहराहीं ॥६७ कोपीन कणगती जाके, पीछे कमंडल है ताके। परिगह एतो ही राखै, इम कथन जिनागम भाखे ॥६८ भोजन सो करिय उदंड, घर पंच तणी थिती मंड । चित धरम ध्यान में राखै, आतम चितवन रस चाखे ॥६९ सुनिये श्रेणिक भूपाल, दर्शन प्रतिमान विसाल। तिह बिनु दस प्रतिमा जानी, निरफल भाषी जिन वाणी ॥७० वासन की बोलि करीजे, उपग उपरीज धरीजे । नीचे हुई जर जर वासन, ऊपर ले भाजन की आसन ७१ सब फूट जाय छिन माहीं, समरथ बिनु कवन रखाहीं। प्रथमहिं दर्शन दिढ़ कोजे, पीछे व्रत और धरी जे ॥७२ एकादश प्रतिमा सारी, ताकी गति सुन सुखकारी। जावे षोड़शमें स्वर्ग, भव दुइ तिहुँ लहि अपवर्ग ॥७३ दशमो प्रतिमा को धारी, क्षुल्लक अरु ऐलक विचार । उत्कृष्ट सरावक एह, भाषे जिनमारग तेह ।।७४
दोहा प्रतिमा ग्यारा को कथन, जिन आगम परमाण । परि पूरण कोनों सबै, किसन सिंघ हित जाण ॥७५
इति प्रतिमा ग्यारा को कथन ।
अब दानादिकार । दोहा आहार औषध अभय पुनि, शास्त्रदान ये चार । श्रावक जन नित दीजिये, पात्र-कुपात्र विचार ॥७६ आगें अतिथि विभाग में, वरनन कीनों सार । इहाँ विशेष कीनों नहीं, दूषण लगै दुवार ।।७७ जो इच्छा चित सुननिकी, पूरब को वृत्तन्त । देखि लेहि अनुराग धरि, तातें मन हरषन्त ॥७८
अथ जल-पालन-कथन । दोहा अब जल-गालण विधि प्रगट, कही जिनागम जेम ।
भाषों भविजन सांभलो, धारो चित धरि पेम ॥७९ दोय घड़ी के आंतरै, जो जल पीवै छान । परम विवेकी जुत दया, उत्तम श्रावक जान ॥८०
छन्द चाल नौतन वस्तर के मांही, छानो जल जतन कराही । गालन जल जिहिं वारे, इक बूंद मही नहिं डार ।।८१ कोहू मतिहीन पुराने, वस्तर माहीं जल
छानें। अर बूंद भूमि पर नाखें, उपजे अघ जिनवर भाखें ॥८२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org