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________________ १५९ किशनसिंह-कृत क्रियाकोष पाण्डु-पुत्र जे खेले जुबा, पांचों राज्य-भ्रष्ट ते हुआ। बारह वरष फिरे वनमाहिं, असन-वसन दुख भुगते ताहिं ॥३२ मांस-लुब्ध राजा बक भयो, राजभ्रष्ट है नरकहिं गयो । तहाँ लहे दुख पंच प्रकार, कवि ते न कहि सके विसतार ॥३३ प्रगट दोष मदिरा ते जान, नाश भयो यदुवंश बखान । तपधर अरु हरि-बलि नीकले, बाकी अर्गान द्वारिका जले ॥३४ वेश्या लगन केरि हित लाय, चारुदत्त श्रेष्ठी अधिकायकोड़ि बत्तीस खोई दीनार, द्रव्य-हीन दुख सहै अपार ॥३५ षट्षंडी सुभूमि मतिहीन, विसन अहेडा में अतिलीन । पाप उपाय नरक सो गयो, दुख नानाविधि सहतो भयो ॥३६ पर-वनिता की चोरी करी, रावण मति हरि निज मति हरी। राम रु हरि सों करि संग्राम, मरि करि लहों नरक दुख धाम ||३७ पर-युवती को दोष महन्त, द्रुपदसुता सों हास्य करंत । कीचक फल पायो तत्काल, रावणनेहु गनिये इह चाल ॥३८ आठ मूल गुण पालै तेह, विसन सात को त्यागी जेह । अरु सम्यक्त जु दृढ़ता धरै, पहिली प्रतिमा तासों परै ॥३९ दोहा प्रथम प्रतिज्ञा इह कही, श्रावक के मुख जान । अब दूजी प्रतिमा कथन, कछु इक कहों बखानि ॥४० __ छंद चाल तह पाँच अणुव्रत जानो, गुणव्रत पुनि तीन बखानो। शिक्षाव्रत मिलि के च्यारी, दूजी प्रतिमा को धारी ॥४१ बारा व्रत बरनन आगे, कोनो चित धरि अनुरागे । पनरुक्त दोष तें जानी. दजा नहिं कथन कथानी॥४२ तीजी प्रतिमा सामायिक, भविजन को सर शिवदायक। आगे बारा व्रत माहीं, बरनन कीनो सक नाहीं ॥४३ चौथी प्रतिमा तिहि जानो, प्रोषध तसु नाम बखानो। बरनन सुनिवे को चाव, द्वादश ब्रत मधि दरसाव ॥४४ पंचम प्रतिमा वड़भाग, सुनि सचित करो परित्याग । काचो जल कोरो नाज, फल हरित सकल नहीं काज ॥४५ सब पत्र शाक तरु पान, नागर बेलि अघ थान । सह कंद मूल हैं जेते, सूके फल सारे तेते ॥४६ अरु बीज जानिये सारे, माटी अरु लूण विचारे। करि त्याग सचित व्रत धारी. पंचम प्रतिमा तिहिं पारी ॥४७ . दिन चढ़े घड़ी दोय सार, पछिलो दिन बाकी धार । इतने मधि भोजन करिहै, छट्ठी प्रतिमा सो धरि है ॥४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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