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________________ १५८ श्रावकाचार-संग्रह दर्शन व्रत सामयिक कही, पोसह सचित्त त्याग विध गही। रयनि-असन त्यागी ब्रह्मचार, अष्टम आरंभ को परिहार ।।१४ नवमी परिग्रह को परिमान, दशमी आद्य उपदेश न दान । एकादशमी दोय परकार, क्षुल्लक दुतिय ऐलक व्रत धार ॥१५ श्रेणिक पूछे गौतम तणी, दरसन प्रतिमा की विधि भणी। गौतम भाष्यो श्रेणिक भूप, दरशन प्रतिमा आदि सरूप ॥१६ एकादश की जो विध सार, जुदी जुदी कहिहों निरधार ।। याहै सुनि करि धरि है जोय, श्रावक व्रत धारी है सोय ॥१७ प्रथमहि दरशन प्रतिमा सुनो, त्गों निज आतम सहजै मुनो। दरशन मोक्ष बीज है सही, इह विधि जिन आगम में कही ॥१८ दरशन सहित मूल गुण धरे, सात विसन मन वचन परिहरे। दरशन प्रतिमा को सुविचार, कछु इक कहीं सुनो सुखकार ॥१९ देव न मान बिनु अरहन्त, दस विधि धर्म दयाजुत सन्त । तपधर मानै गुरु निर्ग्रन्थ, प्रथम सुद्ध यह दरशन पंथ ॥२० संवेगादिक गुण जुत सोय, ताकी महिमा कहि है कोय । धरम धरम के फल को लखै, सो संवेग जिनागम अखै ॥२१ जो वैराग भाव निरवेद, गरहा निन्दा के दुइ भेद । निज चित निंदै निंदा सोय, गरहा गुरुठिग जा आलोय ॥२२ उपसम जे समता परिणाम, भक्ति पंच गुरु करिए नाम । धरम रु धरमी सो अतिनेह, सो वाछल्ल महा गुण गेह ॥२३ अनुकंपा नित ही चित रहे, ए वसु गुण जो समकित गहै । दरशन दोष लगै पणवीस, सुनिये जो कहिया गणईश ।।२४ तीन मूढ़ता मद वसु जान, अर अनायतन षट्विधि ठान । आठ दोष शंकादिक कही, दोष इते तजि दरशन गही ॥२५ भो श्रेणिक सुन इस संसार, जीव अनंत अनंती बार । सीस मुडाय कुतप बहु कीयो, केस लोंच अरु मुनि पद लीयो ॥२६ कोये अनन्तकाल बहु खेद, आतम तत्त्व न जानेउ भेद । जब लो दरशन प्रतिमा तणी, प्रापति भई न जिनवर भणी ॥२७ तातै फिरियो चतुर्गति मांहिं, पुनि भवदधि भ्रमिहै सक नाहिं। प्रावर्तन कीये बहु बार, फिर करिहै जिसके नहिं पार ॥२८ आठ मूल गुण प्रथम ही सार, वरनन कीयो विविध प्रकार । तातें कथन कियो अब नाहि, कहै दोष पुनरुक्त लगाहिं ।।२९ कुविसन सात कह्यों विस्तार, जूआ मांस भखिवो अविचार । सुरापान चोरी आखेट, अरु वेश्या सों करियों भेंट ॥३० इनमें मगन होइ करि पाप, फल भुगते लहि अति सन्ताप । तिनके नाम सुनो मतिमान, कहिहों यथा ग्रन्थ परिमाण ॥३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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