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श्रावकाचार-संबह
अडिल्ल जो कोळ नर मन में इच्छा धरतु है, फिरि परिणाम संकोच निरोघहि करतु है। सो बाराधन निश्चय नय परमानिये, तप इच्छादि निरोध यही मन बानियो ॥९२
बोहा निश्चय चहुं याराधना, ग्रन्थ प्रमाण बखान । किसनसिंह धरि, सूधी, सो शिव लहें निदान ।।९३
ए चहुं विधि याराधना, घरै कौन प्रस्ताव । सो भविजन सुन लीजिए, मन वच बुध करि भाव ॥९४
अहिल्ल छन्द जो कोळ उपसर्ग मरण सम आया है, के दुरभिक्ष पड़े कछु कारण पाय हैं। बरा अधिक बल बर-बर सक्ति न सहै तबै, के तनु रोष अपार मृत्यु सम दुख जब ॥९५ इतने जोग मिलाय उपाय न कछु वहै, मरण निकट निज जानि विचार मन तहै। ध्याय आराधन धर्म निमित तिनकों तजे, सो नर परम सुजान स्वर्ग शिव सुख भजे ॥९६
बाराधना के अतीचार । छंद चाल संलेषण की जो बारे, जीवन को आसा धारे। लोगनि के मुख अधिकाई, निज महिमा लखि हरषाई ॥९७ निजकों लाख दुख अर लोक, करिहै न प्रतिष्ठा थोक । महिमा कछु सुनय न कांनि, मरसी जब ही मन आनि ॥९८ मित्रनि सों करि अति नेह, पुरव क्रीडा की जेह । करि यादि मित्र जुत राग, अतिचार तृतीय मुलागं ॥९९ भुगत्या सुख इह भवमाही, निज मन ही याद कगही। चौथो अतीचार सुजानी, पंचम मुनिये भवि प्रानी ।।७०० संलेषण धारि जान, मन में इम करिय निदान । हूं इंद्र तणो पद पाऊँ, मस्तक किनहीं न नवाऊँ ॥१ चक्रवर्ती संपदा जेती, त्रिय सुत जुत झें मुझ तेतो। ऐसो जो करिय निदान, तप मुरतरु देहों दान ।।२ संलेषण पण अतिचार, भाष्या इनको निरधार । ए टालि मंलेषण कीजै, ताको फल सुर शिव लोजं ॥३
सर्वया। ३१ बनसन तप नाम उपवास काजं जाको बामोदर्य तप लघु भोजन लहीजिए। वस्तु परिसंख्या जे ते द्रव्यान की संख्या कोजे ग्स पारत्याग तेरस छांडि दीजिए। विविक्त शय्यासन ब्रत वारि भवि मुनि काय क्लेश उग्रनप मन को गहीजिए। एई षट्तप कहे बाहिज के बागम में सुर शिव सुख दाई भवि वेग कीजिए ।४। प्रायश्चित्त वहै दोष गुरु परवमाय तब विनय तप गुण वृद्धि को जावनो कोजिए। वैयावृत्त तप गुण चारी वय्यावृत्त कोज स्वाध्याय जिनागम त्रिकाल में पढ़ात्रिये ।
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