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श्रावकाचार-संग्रह सीस हिलाय करे हुंकार, खांसे खखारे अधिकार । कर अंगुलते सैन बताय, अथवा अंकोंमें लिखवाय ॥६४ इतनी किरिया करि है सोय, मौन वरतु तसु मेलो होय । अर जो सैन समस्या करी, मतलब सम जेनहिं तिहिं धरी ॥६५ मन मैं अकुलाय रहै क्रोध, क्रोध थकी नासै शुभ वोध । यातें जे भवि जन मतिमान, मौन धरो आगम परवान ।।६६ अरु तिह समय करै सुभाव, ताते कहै पुण्य बढ़ाव । पुण्य थकी लहि है सुरथान, यामैं कछु संसै नहीं आन ॥६७
अन्तराय सम्पूर्ण।
अथ संन्यास मरण की विधि । सवैया दृगधारी श्रावक व्रत पालै पीछे ही, संन्यास सहित अन्तकाल तजे निज प्राण ही। संन्यास प्रकार दोइ ए कहै कषाय नाम, दुतिय आहार त्याग प्रगट बखान ही ॥ आराधना च्यारि, भावै दरसन प्रथम दूजी, ज्ञान तीजी चरण विशेष तप जान ही। जैसी विधि कषाय संन्यासको विचार जैसे, कहूँ भव्य सुनि मनमांहिं ठीक आनही ॥६८
दोहा
सकल स्वजन पर जननितें, मन वच काय विशुद्ध । शल्य त्यागि किय है क्षमा, करि परिणाम विशुद्ध ॥६९ अति नजीक निज मरन लखि, अनुक्रम तजिय अहार ।
पाछे अनसन लेय के, नियम असन बहुकार ॥७० चार आराधन को तब, आराधे भवि सार । दर्शन ज्ञान चारित्र पुनि, तप द्वादश विधि सार ॥७१
देव शास्त्र गुरु ठोकता, तत्त्वारथ सरधान । निकादि गुण जो सहित, लखि दर्शन मति मान ॥७२
सवैया । ३१ धरम में संका नांहि निसंकित नाम ताहि वांछा” रहित निकांक्षित गुण जानिये । ग्लान त्याग निरविचिकित्स देव गुरु श्रुत मूढता तजै यासौं अमोढ्यवान मानिये ॥ परदोष ढांक उपगृहन धरैया सोई म्रष्टको स्थापै स्थिति करण बखानिये । मुनि गृही धर्म को जु कष्ट टारै वात्सल्य है मारग प्रभावना प्रभावत प्रमानिये ॥७३
संन्यास भरण संपूर्ण ।
अथ अष्ट प्रकार ज्ञान को आराधना । दोहा आठ प्रकार सुज्ञान को, आराधे मति मान । तस बरणन संक्षेपते, कहै ग्रन्थ परमान ॥७४ प्रगट वरण ण लघ दीर्घ जत.रि विशद उपचार। पाठ करे सिद्धान्त को. व्यंजन जित सार ॥७५ आगम अरथ सुजाणि कैं, सुद्ध उचार करेहि । अरथ समस्त संदेह विनु, जो सिद्धान्त पढ़ेहि ॥७६ अर्थ समग्र सुनाम तसु, जानि लेहु निरधार । शब्दार्थोभय पूरण को, आगे सुनहु विचार ॥७७ ।। व्याकरणादि अरथकों, लखिबि नाम अभिधान । अंग पूर्व श्रुत सकल को, करे पाठ जे जान ॥७८
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