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किशनसिंह-कृत क्रियाकोष
अथ सात अन्तरायका कथन । चौपाई जिनमत अन्तराय जे सात, श्रावकका भाषा विख्यात । रुधिर देखिको नाम सुनेइ, तब बुध जन आहार तजेइ ॥४९ मांस नजर देख सुन नाम, भोजन तजे विवेकी राम । नैनन देखे आलो चर्म, असन तजे उपजै बहु धर्म ॥५० हाड राध अरु मूवो जीव, नजर निहार श्रवण सुन लीव । ततक्षिण अन्न छांडि सो देइ, अन्तराय पालक जन जेइ ॥५१
दोहा
सोह करे जिह वस्तुकों, प्रथहि सों फिर कोई । सो ले थाली में धरे, अन्तराय जो होय ॥५२ श्लोक एकमें सात ए. कह्यो सवनको भेव । तिह सिवाय भासे अवर, सो व्योरो सुनि लेव ।।५३
चंडालादिक नर जिते, हीन करम करम करतार । तिनहि लखित वचनहि सुनत, अन्तराय निरधार ।।५४ मल देखत पुनि नाम सुनि, असन तुरत तजि देह । सो व्रतधारी श्रावक सही, अन्य दुष्टता गेह ॥५५ जिन प्रतिमा अरु गुरुनकों, कष्ट उपद्रव थाय । सुनि श्रावक जन असन तज, उपवासादि कराय ॥५६ पुस्तकादि जल अगनिको, उपसर्ग हवो जान । भोजन तज पुनि करयि भवि, उपवासादि वखान ।।५७ नित प्रति श्रावक कों कहै, अन्तराय तहकीक । पालें वे शुभ गति लहैं, यह जिन मारग ठीक ।।५८
इति अन्तराय समाप्त ।
अथ सात प्रकार मौन । दोहा मौंन जिनागम में कहो, सात प्रकार बखान । तिनको वरनन भविक जन, सुन मन वच क्रम ठान ॥५९
चौपाई प्रथम मौन जल स्नान करन्त, दूजी पूजा श्री अरहन्त । भोजन करता वोले नहीं, चौथी सतवन पढ़ते कहीं ॥६० सेवत काम मौन को गहै, यही वचन जिन आगम कहें। मल मूत्रहि क्षेपं जिहि वार, ए लखि सात मौन निरधार ।।३१
बरिल्ल छन्द द्वादशांग मय अंक सकल जानो सदा, असन स्थान मल मूत्र अवर तिय संग सदा । वरण उचार करण न भाष्यो जैन में, यातें गहियै मोंन सप्त विरियां समैं ॥६२
चौपाई . मौन वरतक धारक जीव, चेष्टा इतनी न करि सदीव । ... भौह चढ़ाइ नेत्र टिमकारि, करे जु सेन्या काम विचारि ॥६३ २०
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