SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ श्रावकाचार-संग्रह कपडे अगले पहरे होई, वे ही मुखते राखे सोई। अथवा नये ऊजरे होई, राखे सो पहरे मन दोई ॥३२ सुसुरादिक मित्रन के दिये, नृप आदिक जे वकसीस किये। मुकते राखे हे सो गहै, निज मरयादा को निर वहै ॥३३ पहरण पांवतणी पाहणो, तेलमस्तुनि माहे गणी ।. नई पुराणो निज परतणी, राखै सो पहरै इम भणी ॥३४ इत्यादिक वाहन जे होई, जो असवारी मुकती जोई। काम परै चढ़ि है तिह परी, और न काम नेम जो धरी ॥३५ सोवे को पलंग जो जान, सोड तुलाई तकियो मान । जेतो सयन करन को साज, व्रत धर संख्या धर सिरताज ।।३६ खाट पराई इक दुय चार, काम पड़े बैठे सुविचार । विनु राखे बैठे सो मही, यह जिन आगम सांची कही ॥३७ गादी गाऊ तकियो जाण, चौको चौकी माटी आण । सिंहासन आदिक हैं जिते, आसन माहिं कहाबें तिते ।।३८ गिलम दुलीचा सतरंजणी, जाजम सादो रुई तणी। इनहि आदि विछोणा होय, आसन में गिन लीजे सोय ॥३९ निज घर के अघवारे ठाम, मुकते राखे जे जे घाम । तिनपर बैठे बाकी त्याग, जाको व्रत ऊपर अनुराग ॥४० सचित्त वस्तु की संख्या जान, धान बोज फल फूल बखान । पाणी पात्र आदि लख जेह, मिरच सोपारी डोंढा एह ॥४१ सारे फल सगरे हैं जिते, सचित्त माहिं भाखे हैं तिते । मरजादा मुकती जे मांहि, बाको सबको भेंटै नाहिं ॥४२ संख्या वस्तु तणी जे धरे, सकल दरब को गिणती करै। खिचड़ी लाडू खाठो खीर, औषध रस चूरण गिन धीर ॥४३ बहुत दरब मिल जो निपजेह, गिणती माहि एक गणि लेह । राखे दरब जिते उनमान, सांझ लग गिणि ले बुधिमान ।।४४ सांझ कर सामायिक जबै, सतरह नेम संभारै तबै । अतीचार लागै जो कोय, शक्ति प्रमाण दंड ले सोय ।।४५ बहुरि आखड़ी जे निशि जोग, धार निवाह करै भबि लोग। इह विधि नित्य नियम मरयाद, पालै धरि भवि चित्त अहलाद ॥४६ महा पुण्यको कारण सही, इह भवते शुभ सुरगति लही । अनुक्रम तें ह है निरवाण, बुध जन-मन संशय नहिं आण ॥४७ दोहा नित्य नेम सत्रह तणो, कथन कियो सुखदाय । अन्तराय श्राबक तणा, अब भवि सुनि मन लाय ॥४८ इति सत्रह नेम सम्पूर्ण । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy