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किशनसिंह- कृत क्रियाकोष
श्लोक
भोजने से पाने कुंकुमादि विलेपने, पुष्पताम्बूलगीतेषु नृत्यादी ब्रह्मचर्यके ॥१४ स्नानभूषणवस्त्रादी वाहने शयनासने, सचित्तवस्तुसंख्यादौ प्रमाणं भज प्रत्यहम् ॥ १५ चौपाई भोजन की मरयादा गहै, राखे जेती बारहि लहै ।
पर के घर को जीमण जोई, प्रात समय में राख्यो होई ॥। १६ अन्न अवर मीठादिक वस्तु भोजन माहे जान समस्त । असन चबीनी अर पकवान, गिनती माफिक खाय सुजान ॥ १७ षट्स में जो राखे तजे, तिहि अनुसार सुनिति प्रति सजै । पानी सर वत दूध रु मही, दरब जिते पीने के सही ||१८ तामधि बुध राखे जे दर्व, ता बिनु सकल त्यागिये भव्य । चोवा चन्दन कुंकुम तेल, मुख धोबो रु अरगजा मेल ॥१९ 'औषध आदि लेप है जेह, संख्या राख भोगिए तेह | 'गंध संघिये तेह, जाप समें जे राखे जेह ||२०
'पुष्प
कर मुकती जो फल हेतनी, सचित्त मध्य तेऊ राखनी ।
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सचित्त मांहि राखी नहिं जाय, जिह दिन मूल न करहिं गहाय ॥२१ पान सुपारी डोडा गही, लौंगादिक मुख सोध जु कही । दाल चीनी जावंत्री जान, जाती फल तंबोल बखान ॥ २२ पान आदि सचित्त जु थाय, सचित्त मांहिं राखे तो खाय ।
चित्त माहि राखत बीसरे, तो वह दिन खानी नहि परै ॥२३ गीत नाद कोतूहल जहां, जैवो राख्यौ जैहै तहां ।
मरयादा न उलंघे कदा, जो उपसर्ग आय ह्व' जदा ॥२४
एक भेद यामे है और आप आपनी बैठे ठोर ।
गावत गीत तिया नीकलों, सुनकर हरष्यो चित्त धर रली ॥२५ तामें दोष लगे अधिकाय, मध्यस्थ भाव रहे तिहि ठाय ।
पातर नृत्य अखारे मांहि, नटवा नट जिहि नृत्य कराहि ॥ २६ वादीगर विद्या जे वीर, मुकति राखे जावे धीर । परवनिता को तो परिहार, निज नियमे जिम कर निरधार ॥ २७ पाँचो परबी में तो सोह, अवर दिवस जैसी चित गोह । तजै सरवथा तो परहरे, राखे अंगीकार सु करै ॥२८ सेवत विषय जीव की घात, उपजे पाप महा उतपात । जिह जागे राखे मरयाद, सो निर वाहै तजि परमाद ॥२९ स्नान करण राख तो करै, सोह थकी कबहूँ नहि टरे । आभूषण पहिरे है जिते, घर में और धरे हौं तिते ॥३० पहरन की इच्छा जो होई, सो पहरे सिवाय नहि कोई । भूषण अन्य तने की रीत, राखै मांग पहर कर प्रीति ॥ ३१
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