SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किशनसिंह - कृत क्रियाकोष जिम दान अपात्रह देई, वह भवते नरक लहेहि । फिरि भव में पंच प्रकार, प्रावर्त्तन करे अपार ॥८२ लखि एक जाति गुण न्यारे, तांबो दुय भांति करारे । इकतो गोलो बनवाने, दूजे पातर घडवावे ॥ ८३ गोलो डाले जल मांही, ततकाल रसातल जाही । पातर जलतर है पारे, औरन को पार उतारे ॥८४ तिम भोजन तो इकसाहीं, निपजं गृहस्थ घर माहीं । दीजे अपात्र को जेह, ताते नरकादि पडेह ॥८५ वह उत्तम पात्रह दीजे, सरघा रुचि भक्ति करीजे । इह भवते दिववासी अनुक्रम तें शिवगति पासी ॥८६ इक वाय नीर चलवाई, नोंम रु सांठा सिचवाई | सोनींम कटुकता थाई, सांठा रस मधुर गहाई ॥८७ तिम दान अपात्र जो केरो, दुखदाई नरक वसेरो । भोजन उत्तम पातरको, दीपक सुर शिवगति घर को ॥८८ इह पात्र अपात्राहि दान. भाष्यो दुहवन को मान । सुखदायक ताहि गहीजे, बुध जन अब ढील न कीजे ॥८९ दुख दायक जाण अपार, तत खिण तजिये निरधार । फल पात्र अपात्तर ठीक, इनमें कछु नाहि अलीक || १० जो धन घर में बहु तेरो, खरचन को मन है तेरो । तो अंघ कूप के मांही, नाखे नहि दोष लहाहीं ॥९१ दीयो अपात्र को सोई, भव भव दुखदायक होई । सरपह पकड़े नर कोई, कांटे ताको अहि बोई ॥९२ इक बार तजे वहि प्राण, वाको दुख फेर न जाण । अरु भक्ति अपातर केरी, तातें फिर है भव फेरी ॥९३ यातें अहि गहिवो नीको, खोटे गुरुतें दुख जीको । तार्ते खोटे परहरिये, नित सुगुरु भक्ति उर धरिये ॥९४ अडिल्ल छन्द जो पात्तर के तांई दान दे मानते, अरु अपात्र को कबहुं न दे निज जानते । पात्र दान फल सुरग क्रमाहि शिवपद लहै, भोजन दिये अपात्र नरक दुख अति सहै ॥९५ दया जान मन आन दुखित जन देखिके, रोग ग्रसित तन जानि सकति न विशेषके । मन में करुणा भाव विशेष अनाइकै, यथा योग जिह चाहे सुदेह बनाके ॥९६ फल वर्णन | चौपाई है सम्पदा भूपति तणी । नाना भोग कहां लों भणी । उत्तम जाति लहे कुल सार, इह फल पातर दान अहार ||९७ अति नीरोग होय तन जास, हरे और को व्याधि प्रकास । अति सरूपता औषव जान, दियो पात्रको तस फल जान ॥ ९८ Jain Education International For Private & Personal Use Only १४९ www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy