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________________ श्रावकाचार-संग्रह (३) पं. किशनसिंहजीने श्रावकके बारह व्रतों और ग्यारह प्रतिमाओंके वर्णनके बाद जलगालन, प्रासुक जल-विधि और रात्रिभोजन-त्याग आदिका वर्णन किया है। पं० दौलतरामजीको छ व्यत्क्रम-सा प्रतीत हआ हो और इसीलिए उन्होंने श्रावकके बारह ब्रतोंका वर्णन करनेके पूर्व ही उक्त वर्णन सर्वप्रथम करना उचित समझा हो। जो कुछ भी हो, फिर भी दौलतरामजीको वर्णन-शैली बहुत ही भावपूर्ण. सरल और रोचक है । उन्होंने अहिंसादि प्रत्येक अणव्रतका वर्णन विधि और निषेध-मुखसे किया है । जैस अहिंसाणुव्रतका वर्णन करते हुए पहिले अहिंसा या. दया-करुणाकी महत्ता ६७ छन्दोंमें बताकर पुनः हिंसा पापके दोषोंका वर्णन २४ छन्दोंमें किया है । ( देखो पृ० ५६३-२६८ ) इसी प्रकार सत्य-असत्य, चौर्य-अचौर्य, ब्रह्म-अब्रह्म और परिग्रह-अपरिग्रहके गुण-दोषोंका वर्णन भी खूब विस्तारसे किया है। उपसंहार यद्यपि तीनों ही संग्रहोंमें ५३ क्रियाओंका वर्णन है, तथापि पदम कविने पूर्व परम्पराके अनुसार उत्थानिकामें श्रेणिकके प्रश्न करनेपर गौतम-गणधरके द्वारा श्रावकके व्रतोंका वर्णन कराया है और संस्कृतमें रचित श्रावकाचारोंको दुरुहताके कारण सर्वसाधारणके लाभार्थ उसे अपनो मातृभापामें उन्हें रचनेको प्रेरणा हुई है। यही कारण है कि उन्होंने अपनी रचनाको 'श्रावकाचार'के नामसे ही उल्लिखित किया है। पं० किशनसिंहजो और पं० दौलतरामजीने यत: संस्कृत कियाकोषके आधारपर अपनी रचनाएँ की हैं. अतः उन्होंने अपनी रचनाओंका नाम 'क्रियाकोष' देना ही उचित समझा है। तीनों रचनाओं को अपनी अपनी स्वतन्त्र विशेषता है, अतः तीनों ही पढ़ने. मनन करने और तदनुकूल आचरण करनेके योग्य हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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