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किशनसिंह- कृत क्रियाकोष अथ प्रोषधोपवास अतीचार । छन्द चाल
पोसो धरिहै जिहि भूपरि, देखे नहि ताहि नजर भरि । इह अतीचार इक जानी, दूजे को सुनो बखानी ॥ ६२ जेती पोषह की ठाम, प्रतिलेखे नांहि ताम । दूषण लागे है जाको, मुनि अतिचारती जाको ॥६३ पोषी धरणे की बार, मोचै न मल-मूत्र विकार । मरजादा बिन सौं डारे, संथारो जो विसतारै ॥ ६४
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बैठ उठे तजि ठामे, तीजे दूषण को पायें। पोसो धरता मन माहीं, उच्छवको धारें नाहीं ॥६५
बिनु आदरही सो ठानें, मरज्यादा मन में आने । चौथो इह है अतीचार, अब पंचम सुनि निरधार ॥६६ पढि है जो पाठ प्रमाण, ठीक न ताको कछु जाण । इह पाठ पढ्यो इक नाहीं, अब पढ़िहो एम कहा हीं ॥६७ ए अतीचार भणि पंच, भाषै जिन आगम मंच | पोसो जो भविजन धरिहै, इनको टालों सो करिहै ॥ ६८ फल लहै यथारथ सोई, यामें कछु फेर न जोई । प्रोषध व्रत की यह लीक, माफिक जिन आगम ठीक ॥६९ अरु सकलकीर्ति कृत सार, ग्रन्थहु श्रावक आचार । तामाहै भाष्यो ऐसे, सुनिये ज्ञाता विधि जैसे ॥७० उपवास दिवस तजि वीर, छान्यो सचित्त जो नीर । लेते दूषण बहु थाई, उपवास वृथा सो जाई ॥ ७१ पीवे सो प्रासु करिके, दुतियों जु द्रव्य मधि धरिकै । वेहू विरथा उपवास, लेनो नहि भविजन तास ॥७२ अरु सकति हीन जो थाई, जलते तन हू थिरताई । तो अधिक उसन इम वीर, बिन हु कम किये जो नीर ॥७३ अन्नादिक भाजन केरो, दूषण नहि लागे अनेरो ।
ऐसो आवे जे पाणी, ताकी विधि एम बखाणी ॥७४ उपबास आठमों बाँटो, वहि है इम जाणि निराटी । इनमें आछी विधि जाणी, करिये सो भविजन प्राणी ॥७५ संशय मन इहे न कीजे, प्रोषध में कबहुँ न लीजे । पोषह बिन जो उपवासे, तामें ऐसी विधि भासे ॥७६ उत्तम फलको जे चाहे, ते इह विधि नेम निबाहै । उपवास दिवस में नीर, संकट में तजि बीर ॥७७ अब सुनहु कथन इक नीको, अति सुख करि व्रत घरि जीको । एकान्त दिवस की सांझ, धरिहु तिय दरब जल भांझ ॥७८ प्रासु करि पीवे नीर, तामै, अति दोष गहीर । एकास जब सु कराहि, जल असन लेई एक ठांहि ॥७९
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