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किशनसिंह -कृत क्रियाकोष चिता आठौं मद आरम्भ, चितवन मदन कषाय रु दंभ । इनिकौं जिस विरियां परिहार, कर यों सुबुध सामायिक धार ॥२७ सीत वसन वरषा पुनि वात, दंसादिक उपजत उतपात । जिनवर वचन विर्षे अतिधीर, सहिहै जिके महा बरबीर ॥२८ पूर्वाचार्यनि के अनुसार, जैसु विचक्षन करई विचार । तीन महरत दो इक जाण, उत्तम मध्यम जघन्य बखाण ॥२९ जैसी शक्ति होय जिहिं पास, करिए वैभव-भ्रमण विनास । भव्य जीव इहि विधि जे करै, तिनकी महिमा कविको करै ॥३०
दोहा इह व्रतपाले जे सुनर, मन वच क्रम धरि ठीक । सुरनर के सुख भुजकर, शिव पाने तहतोक ॥३१ जे कुमती जिन नाम को, लैन करै परमाद । सो दुरगति जैहै सही, लहि है दुख विषवाद ॥३२
अथ सामायिक के अतोचार लिख्यते । छंद चाल मन वचन क्रम के ए जोग, परमादी होय प्रयोग।
परिणाम दुष्टता भारी, राखे नहीं ठोक लगारी ॥३३ ।। सामायिक पाठ करत, बतलावं परसौं मंत । बोले फुनि बारंवार, जानों य दूजो अतीचार ॥३४
सामायिक करत अनादर, मनमैं न उच्छाह धरै पर । विनु लगन भावहू पोट, किनि सिर पर दीजिय मोट ॥३५ आसण को करै चलाचल, तनकुं जु हलावै पल पल । फैरे मुख चहुं दिसि भारी, तिजहु अतीचार बिचारी ॥३६ सामायिक पाठ करंतों, चितमाहें एम धरतो। में इह पाठ पटयो अक नाही, पुनि-पुनि छण बीसरि जांही ॥३७ ए अतीचार पण भाखे, जिन बाणी में जिम आखे । जे भवि सामायिक धारी, प्रथम ही है दोष निवारी ॥३८ तिहुं काल करे सामयिक, सब जीवनि को सुखदायक । सामायिक करता प्रानी, उपचार मुनी-सम जानी ॥३९ सामायिक दृगजुत करि है, उत्कृष्ट देव पद धरि है । अनुक्रम पावै निरवाण, यामें कछु फेर न जाण ॥४० मुनि द्रव्यलिंग को धारी, सामायिक बल अनुसारी। कहां लो करिये जु बड़ाई, नवग्रीवां लग सो जाई ॥४१ यातें भविजन तिहं काल. धरिये सामायिक चाल। जात फल पाबे मोटो, जसि जाय करम अति खोटो ॥४२
अथ द्वितीय शिक्षाबत प्रोषधोपवास लिख्यते । चौपाई सामायिक व्रत को बखानि, अब प्रोषध व्रत की सुनि बानि । एक मास में परब जु चार, दुइ आठे दुइ चौदस धार ॥४३ इन में प्रोषध विधि विस्तरे, ते वसु कर्म निर्जरा करें। वे जिनधर्म विर्षे अतिलीन, वे श्रावक याचार प्रवीन ॥४
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