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________________ १३५ किशनसिंह-कृत क्रियाकोष जिम मरयादा की आखदी, तह लों जाय काम वसि पड़ी। घरि बैठा निति धारै ठीक, पाले कबहुं न चले अलीक ॥६३ दिगव्रत को पाले थकी, उपजे पुण्य अपार । सुरगादिक फल भोगवै, यामें फेर न सार ॥६४ मरयादा लीये बिना, फल उत्कृष्ट न होय । हमें पले नहिं इम कहै, बहै विकल मति जोय ॥६५ ___ अब दिखत के अतिचार पांच लिख्यते । छन्द चाल मन्दिर निज पर की आड़, चड़ियो पुनि कोई पहाड़। करध संख्या सो कहिये, टाले ते दोषहि महिये ॥६५ तहखाना कूप रु वाय, गिरि गुफा माहिं जो जाय । इह अधो भूमि मरयाद, टालै दूषण परमाद ॥६६ दिसि विदिसि सोह जे लोनी, तिरछो चलवै मति दीनि । सो तिरयग गमन कहाई, अतोचार तृतीय इह थाई ॥६७ निज खेत भूमि जो थाय, सीमातें अधिक बधाय । सो खेत बृद्धि तुम जाणो, चौथो अतोचार बखाणों ॥६८ जिह वस्तु तणो परमाण, प्रथम ही कीयो जो जाण । तिहिको वोसरि सो जाई, विस्मृति जु अतीचार कहाई ॥६९ इति दिग्गुणव्रत सम्पूर्ण । अथ देशव्रत लिख्यते । चौपाई दिशि विदिशा के जे जे देश, जिह पुरलौं जो करिय प्रवेश । हरे नहीं मरयादा कोई, तिनको पलं देशवत सोई ।।७० मन सैन्य वारण के हेत, मन वच कर मरयादा लेत। आप जहां दिसि कबहु न जाय, तहातणो बड़ती नहीं खाय ॥७१ दोहा सो लहिये बिन बरत को, नेम न मूल कहाय । यातें गहिये आखड़ी, ज्यों फल विस्तर थाय ॥७२ अथ देशवत अतीचार पांच लिख्यते । छन्दचाल कीयो जे देश प्रमाण, तिह पार थकी साँस जाण । कोई नहीं वस्तु मंगावै, कबहूँ न लोभ बढ़ाने ॥७३ जहलों मरयादा ठानी, भांजे नहीं उत्तम प्राणी। भांजे मरयादा जास, अतीचार कहाने तास |७४ मरयादा वारै कोई, नरकों न बुलाने जोई। अरु आप नहीं बतलावै, बतलाए दोष लगाने ।।७५ निजरूपहि सों हँसिवाई, काहू जो देइ दिखाई। इह अतीचार चोथो ही, जिनदेव बखानो यों ही ॥७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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