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किशनसिंह-कृत क्रियाकोष
१३३ जे लम्पट विषयी क्रूर, ते पावै भव दुख पूर । अतीचार तीसरो एह, सुनिये अब चौथो जेह ॥३३
क्रीड़ा अनंग विधि पह, हस्त सुपरसत तिय देह । विकल्प मन में ही आने, परतक्ष ते शीलहि भाने ॥३४ इह अतीचार चौथो ही, बुध करै न कबहू यों ही। पंचम भनिये अतीचार, सुपने में मदन विकार ||३५ उपजे निय भवन काम, विकलपता अति दुख धाम । औषध के पाक बनावे, वह विध रस धातु मिलावै ॥३६ अति विकल हाय निज तियको, सेव हरपावे जियको। वध जन इह रीति न जोग, पण अतीचार इस भोग ॥३७
दोहा इनहीं टाल व्रत गीलको, पालो मन वच काय । इह भवतै मुर पद लहै, फिरि नृप ह शिव जाय ।।३८
अथ परिग्रह प्रमाण अणुव्रत कथन । चौपाई क्षेत्र वास्तु आदिक दस जाण, परिग्रह तणों करै परिमाण । इनको दोष लगावे नहीं, वह देश व्रत पंचम कही ॥३९
छन्द नाराच करोति मूढ़नां प्रमाण कर्ण सेवनां विष, त्रिलोक वेदज्ञान पाय श्री जिनेश यौं अपै । भवन्ति सौख्य सागरो अनन्त गक्ति कौं गहै, त्रिलोक वल्लभो सदा भवन्तरे सिवं तहे ॥४०
दोहा मन विकल्प सरै अधिक. विभव परिग्रह माहि । लहै नहीं अघके उदै, फल नरकादि लहाहि ॥४१
अडिल्ल जन्म जरा पुनि मरण सदा दुखकौं सहै, बहु दूषणको थान रोग अतिही लहै । भ्रमै जगतके माहि कुगति दुखमें परै, विषयनि मूर्छा मांहि न संवर जे करै ।।४२
. दोहा व्रत परिग्रह प्रमाण नर, कीये लहै फल सार । मनु मुकलावै ठीक तजि, दुख भुगतै नहिं पार ॥४३ याते व्रत धरि भव्य जे, मन विकल्प विस्तार । ताहि तजै सुख भोगवे, यामें फेर न सार ॥४४ जे सन्तोष न आदरै, ते भव भ्रमं सदीव । दुख-कर याकों जानिक, त्यागै उत्तम जीव ।।४५ दोष लगै या समझ कै, अतीचार पणि जाणि । तिनको वरणन भेद कछु, आगै कहों बखाणि ||४६
अथ परिग्रह प्रमाणका अतीचार वर्णन । चौपाई क्षेत्र कहावे धरती मांहि, हल खंडन की जो विधि आहि । वास्तु कहावे रहवातणा, मन्दिर हाट नोहोरा तणा ०४७ हिरण्य रूपाको परमाण, करै जितो राखै बुधिमाण । सुवरण सोनो ही जाणिये, ताकी मरज्यादा ठाणिये ॥४८ धन महिषी घोटक अरु गाय, हस्ती बैल ऊँट न थाय । इत्यादिक चौपद जे सही, तिन सिगरे की संख्या कही ।।४९
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