SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२ श्रावकाचार-संग्रह उदर भरो भोजन नहिं करे, ताते इन्द्री बहु बल धरे। ए नव वाडि पालिये जबै, शील शुद्ध व्रत पलिहै तबै ।।२० इति नववाडि संपूर्णम् शील चरित्र कथन । सर्वया ब्राह्मी सुन्दरनि आदि देके सोला सती भई शोल परभाव लिंगछेद सातेई भई । तिन मांहें केऊ नृप सोई शिवध्यान लह्यो केळ मोक्ष जैहैं भूप होय तहाँ ते चई ।। अनन्तमती तुकारीने आदि कैती कहूँ महा कष्ट पाय शील दिठता मई ठई । शीलते अनन्त सुख लहै कछु संशय नाहि भंग भ्रमैं नरक महा पई ॥२१ दोहा सेठ सुदर्शन आदि दे, शीलतणे परभाव । लहै अनन्ते मोक्ष सुख, कहांलों करो बढ़ाव ।।२२ नाराच छन्द सुनो वि सन्त ब्रह्मचर्य पाल बाँधका इसौ. अतीव रूपवान धाय काम को जिसौ । मनोज्ञ खोजता लहाय पुत्र पौत्र सोभितो, अनेक भषणादि द्रव्य और में नहीं इतो ॥२३ गहै वि दीक्षया लहै विज्ञान को प्रकार हो. अनन्त सुख बोध दर्शनादि बीर्य भासही। सुमोक्ष सिद्ध थाय काल बीच है अपार सो, सुसिद्ध खोजता मुखावलोक ने नगारसो ।।२४ दोहा लंपट विषयी पुरुषके, निजपर ठीक न होय । दुरगति दुख फल सो लहै, भ्रमिहै भव दधि सोय ॥२५ अडिल्ल छन्द है कुरूप दुर्गन्ध निदि निरधन महा, वेद नपुंसक दुर्ग व्याधि कुटहि गहा । अङ्ग विकल अति होय ग्रथिल जिमि भासही, परतिय संग-विपाक लही है इम सही ।।२६ दोहा व्रत परवनिता त्यजनको, कथन कह्यो सुखकार । अरु लम्पट विषयी तणो, भाष्यो सहु निरधार ।।२७ शील थकी सुर नर बिमल, सुख लहि शिवपुर जाहि । दुरगति दुख भव-भ्रमणकों, विषयी लम्पट पाहि । ।।२८ अथ ब्रह्मचर्य अणुवत अतीचार । छन्द चाल परकी जो करै सगाई, बतलावे जोग मिलाई । अरु व्याह उपाय बतावै, निज व्रतको दोष लगावै ।।२९ विभिचारिणी जैहैं नारी, परिगृहीत नाम उचारी। जिनको वेश्यादिक कहिये, तिन को संगम नहीं गहिये ॥३० हास्यादि कौतूहल कीजै, शीले तब मलिन करीज । अपरिगृहीत सुनि नाम, पति परणी है जो बाम ॥३१ तसु महा कुशीला जाणी, जसु संगति करै जु प्राणी । हास्यादिक वचन सुभाखै, सो शील मलिन अति राखे ॥३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy