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श्रावकाचार संग्रह
इनकों त्यागे जे जीव, शुभ गति है अतीव । ए अतिचार पण भाखे, व्रत सत्य जमे जिन आखे ॥८८ शिवभूति भयो द्विज एक, पापी घर मन अविवेक । नग पांच सेठ सुत धरिके, पाछे सों गयो मुकर के ॥८९ सत्य घोष प्रगट तसुं नाम, नृपतिय झूठा लखि ताम । जुआ रमि करे चतुराई, तसु तिय तें रत्न मंगाई ॥९० तिह सेठ परीक्षा कारी, जिह लिये निज नग टारी । द्विज मरिकै पन्नग थायो, तत्क्षण असत्य फल पायो ॥ ९१
अवत्त त्याग अणुव्रत कथन | चौपाई
धरो परायो अरु वीसरो, लेखा मैं भोलो जो करो । मही परो नहि है सोय, जो अदत्त त्यागी नर होय ॥९२ चोरी प्रगट अदत्ता सर्व, अणुव्रत धारी तजि है भव्य । लगै व्यापारादिक में दोष, एक देश पलि है शुभ कोष ॥९३
छन्द नाराच
तजेहि द्रव्यपारको सुसंनिधि निरंतरं, भवन्ति भूमि-नाथ भोगभूमि पाय हैं परं । लहेवि सर्व बोध सिद्ध कांतया सुनैन को, अतीव मूर्ति तासकी सहाय चैन देन को ॥९४
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बोहा जाकी कीरति जगत में फैले अति विस्तार ।
उज्ज्वल शशि किरणां जिसी, जो अदत्त व्रतधार ॥९५
सदा हरें पर द्रव्य को, महापाप मति जोर ।
पड्यो रह्यो भोले धर्यो, गहै सुनिचे चोर ॥९६
उडिल्ल छन्द
सदा दरिद्री शोक रोग भयजुत रहै, पापं मूर्ति अति क्षुधा त्रिषा वेदन सहै । पुत्र कलत्र रु मित्र नहीं कोउ जा सके, चोरी अर्जित पाप उदै भो तासके ॥९७
दोहा त्यजन अदत्त सुवरत को, अरु चोरी फल ताहि । सुनवि गहौ व्रत को सुधी, चोरी भाव लजाहि ॥ ९८
अवसादान का अतोचार वर्णन । छन्द चाल
चोरी करने की बात, सिखवावं औरनि घात । जावो परधन के काज, लावो इस बुधि बलि साज ॥९९ कोऊ चोरी कर ल्यावे, बहु मोली वस्तु दिखावं । ताको तुच्छ मोल जु देई, बहु धन की वस्तु सु लेई ||१००
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