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________________ १३० श्रावकाचार संग्रह इनकों त्यागे जे जीव, शुभ गति है अतीव । ए अतिचार पण भाखे, व्रत सत्य जमे जिन आखे ॥८८ शिवभूति भयो द्विज एक, पापी घर मन अविवेक । नग पांच सेठ सुत धरिके, पाछे सों गयो मुकर के ॥८९ सत्य घोष प्रगट तसुं नाम, नृपतिय झूठा लखि ताम । जुआ रमि करे चतुराई, तसु तिय तें रत्न मंगाई ॥९० तिह सेठ परीक्षा कारी, जिह लिये निज नग टारी । द्विज मरिकै पन्नग थायो, तत्क्षण असत्य फल पायो ॥ ९१ अवत्त त्याग अणुव्रत कथन | चौपाई धरो परायो अरु वीसरो, लेखा मैं भोलो जो करो । मही परो नहि है सोय, जो अदत्त त्यागी नर होय ॥९२ चोरी प्रगट अदत्ता सर्व, अणुव्रत धारी तजि है भव्य । लगै व्यापारादिक में दोष, एक देश पलि है शुभ कोष ॥९३ छन्द नाराच तजेहि द्रव्यपारको सुसंनिधि निरंतरं, भवन्ति भूमि-नाथ भोगभूमि पाय हैं परं । लहेवि सर्व बोध सिद्ध कांतया सुनैन को, अतीव मूर्ति तासकी सहाय चैन देन को ॥९४ Jain Education International बोहा जाकी कीरति जगत में फैले अति विस्तार । उज्ज्वल शशि किरणां जिसी, जो अदत्त व्रतधार ॥९५ सदा हरें पर द्रव्य को, महापाप मति जोर । पड्यो रह्यो भोले धर्यो, गहै सुनिचे चोर ॥९६ उडिल्ल छन्द सदा दरिद्री शोक रोग भयजुत रहै, पापं मूर्ति अति क्षुधा त्रिषा वेदन सहै । पुत्र कलत्र रु मित्र नहीं कोउ जा सके, चोरी अर्जित पाप उदै भो तासके ॥९७ दोहा त्यजन अदत्त सुवरत को, अरु चोरी फल ताहि । सुनवि गहौ व्रत को सुधी, चोरी भाव लजाहि ॥ ९८ अवसादान का अतोचार वर्णन । छन्द चाल चोरी करने की बात, सिखवावं औरनि घात । जावो परधन के काज, लावो इस बुधि बलि साज ॥९९ कोऊ चोरी कर ल्यावे, बहु मोली वस्तु दिखावं । ताको तुच्छ मोल जु देई, बहु धन की वस्तु सु लेई ||१०० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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