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श्रावकाचार-संग्रह थावर हिंसा इतनी तजे, अस के घात दोष को भजे । सो धरमी सो परम सुजान, जीवदया पालक प्रतिजान ॥६०
छन्द नाराच करोति जीव की दया नरोत्तमो मही सही, सुबैर वर्ग वर्जितो निरामयो तनु लही । तिलोक हर्म्य मध्यरत्न दीप सो बखानिए, बरै विमोक्ष लक्षमी प्रसिद्ध शिव को जानिए ॥६१
बोहा
खाद्य अखाद्य न भेद कछु, हिंसा करत न ढील । महा पाप की मूल नर, ज्यों चंडाल अरु भील ॥६२
अडिल्ल छन्द जीवबध कर पाप उपार्जित पाक तें, घोर भवोदधि मांहि परै निज आपते । नरक तणा दुख सबै बहुत विचितें सहे, फिर-फिर दुर्गति माहि सदा फिरते रहै ॥६३
दोहा करुणा अरु हिंसा तणो, प्रगट कह्यो फल भेद । वह उपजावे सुख महा, अदया ते 8 खेद ॥६४ ऐसे लखि भविजन सदा, धरो दया चित राग । सुपने हूँ अदया करत, भाव तजहु बड़भाग ॥६५
सवैया पूरव ही मुनिराय दया पालो षट्काय महा सुखदाय शिव थानज लहायो है, प्रतिमा धरैया के उपसमकादि केतेहूँ करुणा सहाय जाय देवलोक पायो है । अजहूँ जीवनि की रक्षा के करैया भवि सुर शिव लहै जिनराज यों बतायो है, या तें हिंसा टार क्रिया पार चित्त धार जिन आगम प्रमाण कृष्णसिंह ऐसे गायो है ॥६६
___ अथ हिंसा अतिचार । चाल छन्द बाधे नर पशुयन केई, रज्जू बंधन दृढ़ देई ।। लकुटादिक तें अति मारे, पाहन मूठी अधिकारे । नासा करणादिक छेदै, परवेदन को नहिं वेदे । पशुवन को भाड़ो करिहै, इसनो हम बोझ जो धरिहै ॥६७ पीछे लादे बहु भार, जाके अघ को नहिं पार । खर बैल ऊंट अरु गाड़ो, मरयाद जितो करि भाड़ो ॥६८ हासिल को भय कर जानी, बोझि भरन अधिक धरानी। घोटक रथ है असवारे, चालै निस सांज सवारे ॥६९ तसु भूख त्रिषा नहिं छूजे, ताको पर दुख नहिं सूजे । काहू नर के सिर दाम, जाकों रोकै निजधाम ||७० तिहि खान पान नहिं देई, क्रोधादिक अधिक करेई । ए अतीचार भनि पांच, अदया को कारण सांच ॥७१ करुणा व्रत पालक जेह, टालें मन में धर नेह । बिन अतिचार फल सारा, सुखदायक हो अधिकारा ।।७२ वे धन्य पुरुष जगमाहीं, ते करुणा भाव धराहीं । करुणा सब विधि सुखदायक, पदवी पावै सुरनायक ||७३
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