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________________ १२२ श्रावकाचार-संग्रह नीच लोक घर को घृत दुग्ध, तजहु विवेक जांणि अशुद्ध । सांढि दूध दोहत तें लेय, तातो होय तहां सो देय ॥६६ निन्द्य वस्तु उपमा इसी, कहिये मांस बरावर जिसी । आमिषकी उपमा इह वीर, जैसी सांढि तणी है खीर ॥६७ याते सांढि दूध को तजो, मांस तजन व्रत निहचे भजो। संख तणो चूनो गौमूत्र, महानिन्द भाषो जिन सूत्र ॥६८ कालिगडा घिया तोरई, कद्दू वीलरु जामानिई।। इत्यादिक फलकाय अनन्त, तिनको तजिये तुरत महन्त ॥६९ फलोय कवांरि कली कचनार, फूल सुहजणा आदि अपार । महानिन्द जीवनि का धाम, तजिये तुरत विवेकीराम ॥७० बोहा त्रपन किरिया के विर्ष, प्रथम मूलगुण आठ । तिन वर्णन संक्षेपते, कह्यो पूर्व ही पाठ ॥७१ जिनवानी जैसी कही, कथा संस्कृत तेह । भाषा तिह अनुसारते, बन्ध चोपाई एह ॥७२ पंच उचम्बर फल त्यजन, मकारादि पुनि तीन । महादोषकर जानके, तुरत तजहु परवीन ॥७३ सर्वया पीपर और बड़फल उंबर कटुम्बरह पाक परिपांच उदुंबर फल जानिये, मद्य मांस मधु तीन मकरादि अतिहीन सुनहु परवीन सबै आठए बखानिये। इनही के दोष जेते तामें पाप दोष तेते लहें न सन्तोष तेते नर खात मानिये, इनिके तजे जो मन वच क्रम भव्य जीव आठ मूलगुण के सधैया मन आनिये ॥७४ चौपाई जा घरमांहि रसोई दोय, तहाँ तानिये चन्दवो लोय । अबर परहिंडा ऊपर जान, उंखल चाकी है जिहि थान ॥७५ फटकै नाज रु वीणे जहाँ, चून छानिबो थानक तहाँ । जिस जागह जीमन नित होय, सयन करण जागा अवलोय ॥७६ सामायिक कीजे जिहि धीर, ए नव थानक लख वर बीर । ऊपर वसन जहां ताणिये, श्रावक चलण तहां जाणिये ॥७७ चाकी ऊखल के परिणाम, ढकणा कीजे परम सुजान । श्वान बिलाई चाटै नाय, कीज जतन इसी विधि भाय ॥७८ खोट लिये मूसलतें नाज, धोय इकान्त धरो बिन काज । छाज चालणा चालणी तीन, चामतणा तजिये परवीण ||७९ चरम वस्तु को त्यागी होय, इनको कबहुँ न भेटे सोय । दिन में कूटे पीसे नाज, सो खाना किरिया सिरताज ।।८० नाज नजर ते सोध्यो परै, तातें करुणा अति विस्तरै । निसिकों जो पीसै अरु दले, जातें करुणा कबहुं न पले ॥८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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