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किशनसिंह-कृत क्रियाकोष उत्तम बार आज जानियो, वासर धन्य इहै मानियो । जनम धन्य अबही मो भयो, पाप कलंक सबे भीग गयो ॥५२ भो करुणाकर जिनवर देव, भव भव में पाऊँ तुम सेव । जब लों शिव पाऊँ जगनाथ, तब लों पकरो मेरे हाथ ॥५३ इत्यादिक थुति विविध प्रकार, गद्य पद्य सत सहस अपार । मुनि गौतम गणधर नमि पाय, अवर सकल मुनिकों सिर नाय ॥५४ जिके अजिका सभा मझार, श्रावक जनहि जु बुद्धि विचार । यथा योग्य सबको नृप कही, मुनि नर-कोठे बैठो सही ॥५५ जाके देव भगति उत्कृष्ट, तासों ताके गुरु को इष्ट । जिन भाषी वाणी सरधान, महा विवेकी अति परधान ॥५६ तास महातम को अधिकार, अरु ताके गुण को निरधार । वरणन को कवि समरथ नाहि, बुध जन जानहु निज चितमांहि ॥५७ ता पीछे अवसर को पाय, गौतम प्रति नृप प्रश्न कराय। देश व्रती श्रावक की जान, त्रेपन क्रिया कहहुँ बखान ॥५८
दोहा होनहार तीर्थेश सुन, इम भाषै भगवंत । त्रेपन किरया तुझ प्रतें, कहूं विशेष विरतंत ।।५९
इह त्रेपन किरया थकी, सुरग मुक्ति सुख थाय । भविजन मन वच काय शुध, पात्रहुं चित हरषाय ॥६०
श्रेपन क्रिया नाम । उक्तं च गाथागुण वय तव सम पडिमा दानं जलगालणं च अणत्थमियं । दंसणणाणचरित्तं किरिया तेवण्ण सावया भणिया ॥
सवैया इकतीसा मूल गुण आठ अणुव्रत पंच परकार, शिक्षाक्त चार तीन गुण व्रत जानिए। तप विधि बारह और एक सम्यग्भाव ग्यारा प्रतिमा विशेष चार भेद दान मानिए । एक जल गालण अणथमिय एक विधि, दृग ज्ञान चरण त्रिभेद मन आनिए। सफल क्रिया को जोर त्रेपन जिनेश कहे, अव याको कथन प्रत्येकतें बखानिए ॥६२
बाट मूल गुण । चौपाई इस वेपन किरया में जान, प्रथम मूल गुण आठ बखान । पीपर, बर, ऊंबर फल तीन, पाकर फल रु कटुंबर हीन ॥६३ मद्य मांस मधु तीन मकार, इन आठों को कर परिहार | अतीचार जुत तज अणचार, आठ मूल गुण धारी सार ॥६४ अस अनेक उपजें इन मांहि, जिन भाष्यो कछु संशय नांहि । अरु जे हैं बाईस अभक्ष, इनको दोष लगे परतक्ष ॥६५
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