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श्रावकाचार-संग्रह
चौपाई वनपति भाषे सुनिहो देव, तुम शुभ पुन्य उदयते एव । विषुलाचल पर सनमति जान, समोशरन आयो भगवान ॥३५ ऐसें सुन आसनतें राय, उठ तिहि दिशि सनमुख सो जाय । सात पेंड़ अष्टांग नवाय, नमस्कार कोनो हरषाय ॥६ परम प्रीति पूर्वक मन आन, जिन आगम को उत्सव ठान । भूषन वसन भूप तिहिं जिते, वनपालक को दोने तिते ॥३७ ह खुशाल वनपालक जबे, मनमांही इम चिन्तवे तबै । इतने सों कर रीते जान, कबहुं न मिलिवे सांची मान ॥३८ देवथान बरु राज दुवार, विद्या गुरु निजमित्र विचार। निमित वैद्य ज्योतिषी जान, फल दीये फल प्रापति मान ।।३९ बानन्द मेरि नगर में थाय, सुन पुरवासी जन हरषाय।। नगर लोक परिजन जन सबै, नृप श्रेणिक ले चाल्यो तबे ॥४० विपुलाचल ऊपर शुभ ध्यान, समोशरण तिष्ठे भगवान । पहुंचो भूपति हरष लहाय, जिनपद नमि थुति करहि बिनाय ॥४१ नयन जुगुल मुझ सफल त्रु थयो, चरण कमल तुम देखत भयो । भो तिहुं लोक तिलक मम आन, प्रतिभास्यो ऐसो महाराज ॥४२ इह संसार जलधि यों जान, आय रह्यो इक चुलुक प्रमान । जे जे स्वामी त्रिभुवननाथ, कृपा करो मोहि जान अनाथ ॥४३ में अनादि भटको संसार, भ्रमते कबहुं न पायो पार । चहुँ गति मांहि लहे दुख जिते, ज्ञान मांहि दरशत हैं तिते ॥४ तातें चरण बाइयो सेव, मुझ दुख दूर करो जगदेव । जै जै रहित अठारा दोष, जै जै भविजन दायक मोष ।।४५ जे जे छियालीस गुणपूर, जे मिथ्यातम नासक सूर। जे जे केवल ज्ञान प्रकाश, लोकालोक करन प्रतिभास ॥४६ जै भविकुमुद विकासन चंद, जै जै सेवितमुनिवर वृंद । जे जे निराबाध भगवान, भगतिवंत दायक शिवथान 11४७ जे जे निराभरण जगदीश, जे जे वंदित त्रिभुवन ईश । ज्ञानगम्य गुण लियो अपार, जै जै रलत्रय भंडार ।।४८ जे जे सुखसमुद्र गंभीर, करम शत्रु नाशन वर वीर । आजहि सीस सफल मो भयो, जब जिन तुम चरणनकों नयो I४९ नेत्र युगल आनंदे जब, पादकमल तुम देखे तबै । श्रवण सफल भये सुन धुनी, रसना सफल अबे थुति भनी ॥५० ध्यान धरत हिरदे धन भयो, करयुग सफल पूजते थयो। कर पयान तुमलों आइयो, पदयुग सफलपनो पाइयो ॥५१
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