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श्रावकाचार-संग्रह अथ बाईस अभक्ष दोष वर्णन । चौपाई बोरा नाम गडालख जान, अनछाना जलको बंधान । घोर वरा को बिदल कहंत, खातां पंचेंद्री उपजंत ॥६६ निशि भोजन खाये जो रात, अरु वासी भखिए परभात । बहु बोजा जामें कण घणा. कहिए प्रगट बिजारा तणा ॥६७ जिहिं फल बीजनके घर नाहि. सो फल बहु बीजो कहबाहि । बेंगण महापाप को मूर, जे खावें ते पापी क्रूर ॥६८ संधाणे की विधि सुन एह, जिम जिनमारग भाषी जेह । राई लूण आदि बहु दर्व, फल फूलादिक में धर सर्व ॥६९ नांखे तेल माहि जै सही, नाम अथाणी तासौं कही। तामें उपजे जीव अपार, जिह्वा लंपट खाय गंवार ||७० पाप धर्म नहिं जाने भेद, ता वसि नरक लहै बहु खेद । नींबू लूण मांहि साधिये, वाड़िरा बड़ी अरु राधिए ।।७१ लण बाछि जल में फलमार, कैराबिक जो खाय संवार । उपजे जीव तासमें घणे, कवि तस पाप कहां लो भणे ॥७२ मरजादा बीते पकवान, सो लखि संधाणे मतिमान । त्याग करत नहिं ढील करैह, मन वच क्रम जिन वचहि फलेह ।।७३ जो मरजादा की विधि धार, भाष्यो जिन आगम अनुसार । जिह में जल सरदी नहि रहै, तिस मरजादा लखि भवि इहै ।।७४ सीतकाल मांहे दिन तीस, पन्द्रह ग्रीषम विस्वावीस ।
वरषारितु भाषे दिन सात, यों सुनियो जिनवाणी भ्रात ॥७५ उक्तं च गाथा हीमंते तोस दिणा, गिम्हे पणरस दिणाणि पक्कवणं ।
वासासु य सत्त दिणा, इय भणियं सूय जंगेहिं ॥७६ चौपाई-तल्यी तेल घृत में पकवान, मीठे मिलियो खै जो घांन ।
अथवा अन्नतणो ही होय, जल सरदी तामै कछु जोय ।।७७ आठ पहर मरज्याद बखान, पाठे संधाणा सम जान । भुजिया बड़ा कचौरी पुवा, मालपुवा घृततल जु हुवा ॥७८ जुमक बड़ी लूचई जान, सीरो लापसी पुरी बखान । कोए पीछे सांझलो खाहि, रात बस तिन राखे नाहिं ।।७९ इनमें उपजै जीव अनेक, तिनही तजो सुधार विवेक । तरकारी पाटो खीचड़ी, इन मरजाद सुसोला घड़ी ८० रोटी प्रात थकीलों सांज, खइये भवि मरजादा मांज । पीठे सीला वासी दोष, तजो भव्य जे शुभ वृष पोष ।।८१
छन्द चाल केते नर ऐसे भा, हम नहीं अथाणो चार्षे । कैरी नीबू के मांही, नानाविध वस्तु मिलाहीं ॥८२
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