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श्री किशन सिंह कृत क्रियाकोष
मंगलाचरण
दोहा
समवशरण लक्षमी सहित, वर्धमान जिनराय । नमो विबुध वन्दित चरण, भविजन को सुखदाय ॥ १ जाके ज्ञान प्रकाश में, लोक अनन्त समाव । जिम समुद्र ढिग गाय खुर, यथा नीर दरसाब ॥ २ वृषभनाथ जिन आदि दे, पारसलों तेईस । मन, वच, काया, भाव धर, बन्दो कर घर सीस ॥ ३ नमो सकल परमातमा, रहित अठारा दोष, छियालीस गुण आदि दे, हैं अनन्त गुण कोष ॥४ वसु गुण समकित आदि जुत, प्रणमों सिद्ध महन्त । काल अनंतानंत तिथि, लोक शिखर निवसंत ॥५ आचारज, उवझाय, गुरु, साधु त्रिविध निग्रंथ । भवि बनवासी जननिको, दरसावें शिवपन्थ ||६ जिनवाणी दिव्यध्वनि खिरी, द्वादशांग मय सोय । ता सरस्वतिकों नमतहूँ, मन, वच, क्रम जिन सोय ॥७ देव, गुरु, श्रुत कों नमूं त्रेपन किरया सार । श्रावक की बरणन करू, संक्षेपहि निरधार ॥८
चौपाई
जम्बूद्वीप द्वीपसर जान, मेरु सुदरशन मध्य बखान ।
ताको दक्षिण दिस शुभ लसे, भरतक्षेत्र अति सु बसही बसे ||९ तामैं मगध देश परधान, नगर मटंब द्रोणपुर थान ।
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वन उपवन जुत शोभा लहै, ताको वरणन कवि को कहै ||१० राजगृही नगरी अति बनी, इन्द्रपुरी मानों दिव तनी । जिनवर भवन शोभ अति लहै, तस उपमा बरणन को कहै ।। ११ श्रावक उत्सव सहित अनेक जिन पूजें अति धर सुविवेक । मन्दिर पंति शोभै भली, गीतादिक पूरवें मन रली ॥१२ धरमी जनतामें बहु बसें, दान चार दे चितक लसें । चहूँ फेर तासके कोट, गोपुर जुत अति बनो निघोट ॥१३ बाड़ी बाग विराजें हरे, सघन दाख दाम्युं द्रम फुरे । और विविध के पादप जिते, फल फुल्लित दीसत है तिते ||१४ तिह नगरी को भूप महन्त, श्रेणिक नाम महागुणवन्त । क्षायिक समकित धारी सोय, तासम भूप अवर नहि कोय ।। १५ मण्डलीक भूपति सिरदार, बहुत तासु सेवें दरबार । परजा पालन को अति दक्ष, नोतवान धरमी परतक्ष ||१६ तास चलना है पटनार, रूपवन्त रम्भा उनहार । समकित दृष्टि सुअत गुणवती, पतिवरती सीता सम सती ॥१७
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