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श्रावकाचार-संबह वाग्वर देश सुहामणों, बानन्दा, सापुर नयर मझार तो। हाट हारे मन्दिर साली, आनन्दा, प्रजा वसे वर्ण चार तोर
श्री बादिनाथे तीर्थ तणों यानन्दा, सोहे जिन प्रासाद तो। शिखर मंडप कलश दीपे बानन्दा, दंड ध्वजा लहिके चंग तो ५० मुनिवर बार्यिका रहे यानन्दा, श्रावक श्राविका गुणधार तो। दान पूजा जप तप करे बानन्दा, नन्दी संघ विचार तो ॥५१ हरषवत हुँबड़ न्याती, बानन्दा, निज वंश सरोज हंस तो। खदिर गोत्रीत गुण निलो यानन्दा, विरीत कुल अवतंस तो ५२ आगम अध्यात्मवेदी, आनन्दा, शास्त्रवेदी बहु शुद्ध तो। निज शक्तें स व्रतधारी, बानन्दा, ते थया रास प्रशस्त तो ॥५३ जेहनी शक्ति बेहवी होइ, आनन्दा, कवित्त करे तेहवा तेह तो। सुगमपणे में रास कोयो, बानन्दा, श्रावक धर्म तपो एह तो ॥५४ निज-पर-हित उपकार हित, आनन्दा, कोयो शासन प्रभाव तो। जान उपयोग विस्तारियो मानन्दा, कृपा बुद्धि स्वभाव तो ॥५५ पर उपकार जे नहि करें, बानन्दा, वृथा जीव्यो नर सोइ तो। बजाकण्ठे पयोधर, आनन्दा, क्षीर नीर नवि होइ तो ॥५६ इम जाणी पर हित कीजिए यानन्दा, निब शक्ति अनुसार तो। छती शक्ति हित जे करे नहीं आनन्दा, ते नर कहिये गमार तो ॥५७ छब्बीस भेद भासे भष्यों यानन्दा, श्लोक शत सत्तावीस तो। पंचास बधिक सही बानन्दा, ग्रन्य संख्या अशेष तो ।।५८ लिखो लिखावो भावे करी आनन्दा, श्रावकाचार शुभ रास तो। जिनवाणी विस्तारिये आनन्दा, उपजे पुण्य प्रकाश तो ॥५९ संवत संख्या जिनभाव"ना, आनन्दा, संवच्छर संख्या प्रमाद" तो । (१६१५) मास माहु सोहामणो आनन्दा, भाइ वा सुत मर्याद तो॥६० तिथि संख्या चारित्र मेदे, आनन्दा, रस संख्या शुभवार तो। शुभ नक्षत्र शुभयोगे, आनन्दा, कोयो में श्रावकाचार तो ॥६१ यापणे पर हितकारी, आनन्दा, गुणकारी गुणवंत तो। बा रास कियो में संत बानन्दा, हित मित सुगम पणे तो ॥६२ निर्गुण नर थी वृक्ष भला आनन्दा, जे करे पर उपकार तो। यापणें गरमी दाहिये आनन्दा, छाँह देय फलसार तो॥६३ पुरुष चिन्तामणि कामचेनु, आनन्दा, कल्प तरु मेघ घार तो। गुरु आसे हे जे गुण करे, आनन्दा, निज पर करे उपकार तो ।।६४ गुण केडे सहु गुण करे, बानन्दा, एहवो लोक विवहार तो। अवगुण केडे गुण करे, आनन्दा, एते उत्तम आचार तो ॥६५ निज शक्ति उद्यम करी, आनन्दा, पालो शुभ बाचार तो। बेतलु पले, तेतलु सही, बानन्दा, नहीं तो श्रद्धा भवतार तो ॥६६
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