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________________ १०८ श्रावकाचार-संग्रह अवर शास्त्र कवित्त गुरु, आनन्दा, ब्रह्मचारि श्रोजिनदास तो। .... .. ... ... .... .... ॥१३ जेणें धर्म उपदेश दियो आनन्दा, शास्त्र भणों बली जेह तो। कोमल अल्पमति छै जेहनी आनन्दा, ते भणों रास भास एह तो ॥१४ ते सहु गुरु हवा मुझ तणा, आनन्दा, कर जोड़ो करूंअ प्रणाम तो। गुरु गुण न विलोपिये आनन्दा, लोपे गुरु लोपी पापी नाम तो॥१५ मुझ हृदय कमल मांहे आनन्दा, गुरु भानु वाणी किरण तो। मोह तिमिर दूरे हरे आनन्दा, ते गुरु तारण तरण तो ॥१६ समन्तभद्र सूरी कृत आनन्दा, वसुनन्दी श्रावकाचार तो। आशाधर पंडितकृत आनन्दा, सकल कीत्ति कृत सार तो॥१७ ते काव्य गाथा श्लोकरूप आनन्दा, कवि न रचना जाणी तेह तो। ते शास्त्रमें सांभल्या आनन्दा, सहगुरु उपदेशे एह तो ॥१८ मे रचना जाणी बहु आनन्दा, उपनों मन उल्हास तो। ते शास्त्र अनुक्रमें कियो आनन्दा, रासरूप देखी भार तो ॥१९ ते ग्रन्थ माहे जे कह्यो आनन्दा, ते को रास मझार तो। ओ कठिण ऊ कोमल आनन्दा, अवर अन्तर नहीं सार तो ॥२० बहु बुद्धी ते बहु पढ़ें, आनन्दा, शास्त्र मांहें विस्तार तो। ते संक्षेपे ए वर्णव्यु आनन्दा, रासरू सारोद्धार तो ॥२१ बहु बुद्धि होइ जेहनी आनन्दा, शास्त्र भणों बली तेह तो। कोमल अल्पमति छ जेहनी, आनन्दा ते भणे रास भास एह तो ॥२२ श्रावकाचार समुद्र तणो, आनन्दा, गुणरत्न नहीं पार तो। ते भेद जाइ का किम आनन्दा,हुँ अल्पमति श्रुतसार तो ॥२३ पूरब सूरी जे नर कह्यां, आनन्दा, ते किम लाभे पारतो। संक्षेपेंमें वर्णव्यो आनन्दा, श्रावक तणो आचार तो ॥२४ देव गुरुमें वंदिया आनन्दा, तेह थी उपनों पुण्य तो। पुण्य पसाइमें भेद रच्यो आनन्दा, वेपन क्रिया तणों धन्य तो ॥२५ बुद्धिवंत कवि जे हुआ, आनन्दा, तेणें कियो बहुअ प्रकाश तो। गुरु बाटें मुझ जाइती आनन्दा, उपजे नहीं आलस तो ॥२६ गुरु भाषे बाटें जाता आनन्दा, उपजे नहीं क्लेश तो। जिम बिधे हीरा मोती आनन्दा, सहजें सूत्र प्रवेश तो ॥२७ जिणी बाटे गजा संचरे आनन्दा, तिहां मगति नहीं दुःख तो। गगनें जिहां गरुड गमें, आनन्दा, तिहां हंसने होइ सुख तो ॥२८ वन माहे बहु जीव रहे, आनन्दा, आनन्दा, सबल सिंघ होइ तो। तिहां हरणां हरषी रहो आनन्दा, प्रगट शक्ति करी जोइ तो ॥२९ विन्ध्यावन माहें गज रहे आनन्दा, दीर्घ पणें करे नाद तो। देडक निजशक्ति करी, आनन्दा, किम न करे बहु साद तो ॥३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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