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पदम-कृत धावकाचार
उत्तम नर पदवी लहि, ग्रही जिन दीक्षा सार । ध्यान बलें कर्म निर्जरी, पामे मोक्ष दुआर ॥५ अष्ट कर्म यो वेगला, अष्ट गुण अनन्त । ज्ञानाकार ते निर्मला, मुक्ति वधूवर कन्त ॥ ६
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इन्द्र आदे जे भोगिया, हुब हुई छे छसे जेह तेह | सो सुख थी अनन्तगुण, एक समय लहे, सिद्ध तेह ॥७ बन्धन बन्ध्यो चोर जिम, बन्ध गये जिम सौख्य । कर्म-बन्ध गये तिम, सौख्य लहे सिद्ध मोक्ष ॥८ श्रावकाचार - महिमा घणी, जस गुण कह्यो किम जाय । जिन सेवक पदमो कहे. मन वांछित सुख दाय ॥९
इति श्री पदम विरचित श्रावकाचार- रासः सम्पूर्णः ।
ग्रन्थकार-प्रशस्तिः । अथ ढाल अानन्दानी
त्रेपन क्रिया इम वर्णवी, आनन्दा, संक्षेपे सविचार तो । विस्तारे आगम जाण जो आनन्दा, जिनशासन अतिसार तो ॥१ चार ज्ञान सम रिद्धी घणी आनन्दा, गौतम गुण विशाल तो । श्रेणिक भूप जे पूछियो आनन्दा. ते कह्यो गुण पाल तो ॥२ गौतम स्वामी जे अंग को आनन्दा, सातमो उपासकाचार तो । प्रमाण पद मेदें करी आनन्दा, तेह तणों नहीं पार तो ॥३ ते अनुक्रमे सुधर्म सूरी आनन्दा, केवली जम्बूकुमार तो ।
पछें पंच श्रुतकेवली हुआ आनन्दा, वली अंग पूरब दशधार तो ॥४ काल दोषें पूर्व हीन थया, आनन्दा, हीन थया अंग इग्यार तो । अंग पूरव अंश रहिया, आनन्दा, मुनिवर तर्फे आधार तो ॥५ ते अनुक्रमे परम्परा आनन्दा, श्रीजिन तणो उपदेश तो । शास्त्रतणी रचना रची, आनन्दा, सह गुरु कियो निवेश तो ॥६ श्रीमूल संघ सरस्वती गच्छ, आनन्दा, बलात्कार गण विशाल तो । कुन्दकुन्दाचार्य हुआ, आनन्दा, अनुक्रमें गुरु गुणमाल तो ॥७ श्रोजिनसेन गुणभद्र सूरी आनन्दा, अकलंक अमृतचन्द्र तो। ज्ञानी घ्यानी दिगम्बर जती आनन्दा, परम्परा सूरी प्रभाचन्द्र तो ॥८ श्रीपद्यनन्दी पटि हुआ आनन्दा, सकलकीत्ति भवतार तो । भुवनकीति तपमूर्ति, आनन्दा, ज्ञानभूषण गुण धार तो ॥९ श्रीविजय कीति पाटे उपनां, आनन्दा, भट्टारक श्रोशुभचन्द्र तो । भव्य कुमुदचन्द्र जसु हुआ आनन्दा, कुवादीगज मृगेन्द्र तो ॥१० तस चरण कमल नमी आनन्दा, प्रणमी निज गुरु पाय तो । जस पसाइ मति निर्मली आनन्दा, धर्म कवित बुद्धि थाय तो ॥११॥ आम्नाय गुरु श्रीशुभचन्द्र, आनन्दा, आगम गुरु विनयचन्द्र तो । अध्यात्म गुरु कर्मश्रीब्रह्म, बानन्दा, शिक्षा गुरु हीर ब्रह्मेन्द्र तो ॥१२
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