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श्रावकाचार-संग्रह
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जिनवाणी निज मुखे भणो ए, नरेसुआ, करे धर्मध्यान अभ्यास । नमोकार मंत्र जपि ए नरेसुआ, क्ष ते पापनी रासि ॥७२ संन्यास तणां जे साधक ए, नरेसुआ, धर्म सखाई रहे पास । सावधान होइ सुभट पणों ए, नरेसुआ, करे ते ध्यान उल्हास ॥७३ निज मुखें जाप जपि ए, नरेसुआ, जाप तणो नहीं शक्ति । अन्तर जल्प तब चितवी ए, नरेसुआ, परमेष्ठो गुण-भक्ति ॥७४ शुद्ध बुद्ध हुं चिद्रूप ए, नरेसुआ, कर्म-कलंक रहित।। सिद्ध सरीखो निज मन हवि ए. नरेसुआ, आपें आप गुण-सहित ।।७५ धर्म ध्याननें निज मन जड़ो ए, नरेसुआ, धर्म सखाई जेह । जिन वाणी भणतां सुणी ए, नरेसुआ, नवकार मंत्र वली तेह ॥७६ जिम जिम धर्मध्यान करे ए, नरेसुआ, तिम तिम होइ पाप-हाणि । क्रूर कर्म सह निर्जरी ए, नरेसुआ, उपराजी पुण्य गुण-खाणि ॥७७ मरण समाधि साधीउ ए, नरेसुआ, परिहरि निज देश प्राण । संन्यास तणे फल ऊपजे ए, नरेसुआ, सोलमें स्वर्गे गीर्वाण ॥७८ इन्द्र अथवा महधिक देव ए, नरेसुआ, संपुट सेज्या मझार । अन्तमुहुर्त मांहे सही ए, नरेसुआ, नव यौवन अवतार ॥७९ सलावकसो बेठो थई ए, नरेसुआ, देखे ते स्वर्ण विमान। विस्मय पामी जब चितवे ए, नरेसुआ, तब आवे अवधि सुज्ञान ॥८० पेहला भव वृत्तान्त सही ए, नरेसुआ, जाणे सयल विचार । धर्म फले इहाँ उपनो ए, नरेसुबा, धन धन श्रावक धर्म सार ।।८१ देव मन्त्री आवे वीनवे ए, नरेसुआ, स्वर्ग विमान ते एह । देव देवी सहु तम तणो ए, नरेसुआ, पुण्य फले बहु तेह ।।८२ सहज वस्त्र आभरणे लंकर्यो ए, नरेसुआ, निर्मल वैक्रिय देह । सात धातुथी वेगलो ए, नरेसुआ, आँख मेष दुख नहीं तेह ।।८३ निज परिवार सुं लंकों ए, नरेसुआ, जाइ श्री जिनगेह । वापि अकृत्रिम स्नान करी ए, नरेसुआ,धीतवस्त्र पहरी देह ॥८४ अष्ट प्रकारी पूजा लेइ ए, नरेसुआ, पूजे श्री जिनदेव। गीत नृत्य वाजित्र करी ए, नरेसुआ, विविध भक्ति स्तव सेव ॥८५ पुण्य घणो पोते करी ए, नरेसुआ, आवी ते निज ठामि। धर्म तणा फल भोगवी ए, नरेसुआ, थाइ ते सयल ऋद्धि स्वामि ॥८६
दोहा चरमांगी जे मुनि होय, उत्कृष्ट फल संन्यास । कर्म हणी केवल लही, पामे अविचल वास ।।१ चरमांग विण जे गृही लहे, संलेखण फल तेह । ग्रेर्वयक नव पंचोत्तर, अहमिन्द्र पद लहे तेह ॥२ उत्तम साधक श्रावक, पाले संन्यास विधि जेह । सोलमा स्वर्ग लगें ते जाइ, पामें इन्द्र पद तेह ॥३
उत्कृष्ट पणे त्रण भव ग्रही, जघन्य पणे भव सात । सुर नर वर पदवी लही, मन वांछित सुख व्रात ॥४
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