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पदम-कृत श्रावकाचार
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शुक्र शोणित थी उपज्यो ए, नरेसुआ, सात धातु मय देह । सर्व अशुचिनों पोटलुए. नरेसुआ, डाहो किम करेय सनेह ।।५४ चपल मन गज बांधवा ए, नरेसुआ, वैराग स्तम्भ समान । सुमति संकल स्युं सांकल्यो ए, नरेसुआ, अंकुश देय भेदज्ञान ॥५५ पंचइन्द्री विषय संवरो ए, नरेसुआ, स्पर्शन रसननि घ्राण । चक्षु करण इन्द्री तणा ए, नरेसुआ, विषय रसनां विष-समान ॥५६ शरीर-विषय गज बांधिया ए, नरेसुआ, जिह्वा-रसें मच्छ एह । कमल स्कन्धे भ्रमर मुआ ए, नरेसुआ, वर्ण पतंगज देह ।।५७ कर्ण-विषय मृग बांधियो ए, नरेसुआ, एक एक सेवे इन्द्रो जीव । पंच इन्द्री-भोग जे सेवसे ए, नरेसुआ, ते सहसी दुःख अनन्त ॥५८ पंच इन्द्री मन तणा ए, नरेसुआ, विषय छोड़ो अट्ठावीस । सन्तोष धरि समता भावे ए, नरेसुआ, परिहरि राग ने द्वेष ॥५९ जिम जिम मन भ्रान्ति समि ए, नरेसुआ, तिम तिम उपशम भाव । शुद्ध परिणामें ऊपजे ए, नरेसुआ, नीपजे सहज स्वभाव ॥६० सम परिणामें तप जप ए, नरेसुआ, समता भावें शुभ ज्ञान । सुमति संजम सिद्ध करे ए, नरेसुआ, समता सर्व प्रधान ॥ ६१ साधक श्रावक साधे सही ए, नरेसुआ, अन्त संलेखण जेह । वृद्ध पणे संन्यास ग्रहो ए, नरेसुआ, क्षीण इन्द्री आयु देह ॥६२ उपसर्ग दुर्भिक्ष आवो पड़े ए, नरेसुआ, अति रोग जु असाध्य । व्रत-भंग हो तो जाणीने ए, नरेसुआ, अनशन विधि तब साध ॥६३ सर्व प्राणी क्षमा करी.ए, नरेसुआ, आवी गुरु सान्निध्य । दोष आलोचि बालक परि ए, नरेसुआ, निःशल्य थई निज बुद्धि ॥६४ हलु हलु आहार हीनुं करो ए, नरेसुआ, निजशक्ति अनुसार । आहार त्यजी पय वस्तु भजो ए, नरेसुआ, दुग्ध घोल तक्र सार ॥६५ क्रमि क्रमि तक छोड़ीये ए, नरेसुआ, केवल पछे लीजे नीर । पळे नर समता मूकोये ए, नरेसुआ, सुभट थई मन धीर ॥६६ प्रासुक भूमि शिला पर ए, नरेसुआ, कीजे संथारो सार। कठिण कोमल समता भावि ए, नरेसुआ, कीजे नहीं खेद विकार ।।६७ वरषा शीत उष्णतणा ए, नरेसुआ, सहो परीषह भार । क्षुधा तृषा भय रोग नहीं, नरेसुआ, रहे गुफा गढ़मझार ॥६८ चार आराधना आराधिए ए, नरेसुआ, दर्शन ज्ञान चारित्र । व्यवहार निश्चय भेद ज ए, नरेसुआ, तप तपो ते पवित्र ॥६९ मरण-समय मुनि होइ ए, नरेसुआ, भावलिंगी अवतार । त्रिधा त्रिविध वैराग्य चित ए, नरेसुआ, अनुप्रेक्षा चितो बार ॥७० शरीर नहीं जो आपणो ए, नरेसुआ, तो आपणों किम होय । अति शुद्ध चिद्रूपक चितवो ए, नरेसुआ जासें भव-छेद होय ।।७१
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