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थावकाचार-संग्रह
क्रोध मान माया लोभ ए, नरेसुआ, छोड़ो कषाय ते चार । कषाय त्यजे नहीं जा लगे ए, नरेसुआ, त्या नहीं समता भाव ॥३६ क्रोध मान माया टालीये ए, नरेसुआ, आपण परने करे रोष । गुण तो अंश न उपजे ए, नरेसुआ, अवगण उपजे लाख ।।३७ माने निधाने ए दुःख तो ए, नरेसुआ, मान लोपे जोव सांन । माने केह ने माने नहीं ए, नरेसुआ, जिम मतवालो अज्ञान ।।३८ माया पिशाची परिहरो ए, नरेसुआ, माया ते दुःख दातार । कपटें कूडे घणुं नड्या ए, नरेसुआ, रड्या तें भव मझार ॥३९ लोभ क्षोभ करे धर्म तणुं ए, नरेसुआ, लोभी नहीं किहीं सुक्ख । गुण दोष जाणे नहीं ए, नरेसुआ, लोभी देखे सदा दुक्ख ॥४. कोपे द्वीपायन दुर्गति गयो ए, नरेसुआ, वशिष्ट सुनि तप भ्रष्ट । मधुपिंगल देव दुर्गति गयो ए, नरेसुआ, बाहु दंडक देश नष्ट ॥४१ मानें रावण दुर्गति गयो ए, नरेसुआ, केशव कौरव पीर । माया करि मरीचि मुओ ए, नरेसुआ, दुर्गति पाम्यो, दुःख भीर ।।४२ लो) लुब्भदत्त मुओ ए, नरेसुआ, कूप माहे मधु बिन्दु काज । नवनीते श्मश्रु वली मूओ ए, नरेसुआ, लोभ करी बहु राज ॥४३ एकेक कषाय वशि बापड़ा ए, नरेसुआ, भमे ते बहु संसार । चार कषाए जे करे ए, नरेसुआ, तेहना दुःख नो नहीं पार ॥४४ राग राक्षस रल्यां घणुं ए, नरेसुआ, गल्यां ते रागी बहु जीव । हित अहित क लखे नहीं ए, नरेसुआ, भव-दुख सहे अतीव ॥४५ देष धूतार धृते घणूं ए, नरेसुआ, जीव ने ये बहु दुक्ख । चहुँ गति मांहे प्राणिआ ए, नरेसुआ, द्वेष नहीं किहां सुक्ख ।।४६ राग द्वेष अग्नि बले ए, नरेसुआ, देह पोला काष्ठ मझार । समता जल विण जीव कीट ए, नरेसुआ, कष्ट महे ते गमार ॥४७ इम जाणी राग द्वष त्यजो ए, नरेसुआ, भजो समता परिणाम । क्रूर भाव सहु परिहरी ए, नरेसुआ, प्रशस्त करो मन ठाम ॥४८ समता भाव कोजे सदा ए, नरेसआ, भावना भावो वली चार । मैत्री प्रमोद करुणापणां ए, नरेसुआ, मध्यस्थ भाव भवतार ।।४९ सर्व प्राणी मैत्री भाव ए, नरेसुआ, प्रमोद करो गुणवन्त । क्लिष्ट जीव कृपापणुं ए, नरेसुआ, विपरीत देखि मध्यस्थ सन्त ॥५० सम परिणामनि कारण ए, नरेसुआ, चितो त्रिविध वैराग । संसार भोग शरीर संपन ए, नरेसुआ, मोक्ष तणुं जसुं माग ।।५१ संसार सागर दुःखें भर्यो ए, नरेसुआ, दुःख ते पंच प्रकार । द्रव्य क्षेत्र काल भव भाव ए, नरेसुआ, परावर्त अनन्ती वार ॥५२ भोग रोग सम जाणिये ए, नरेसुआ, जिम चंचल सन्ध्या-राग । लव-सम सुख देय करी ए, नरेसुआ, दुख देइ मेरु-सम भाग ।।५३
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