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पदम-कृत श्रावकाचार निःशंक आदें अष्ट अंग ए, नरेसुआ, संवेग आदे आठ गुण । उपशम वेदक क्षायिक ए, नरेसुआ, दर्शन पालो निपुण ॥१८ कुज्ञान त्रण दूरे करी ए, नरेसुआ, पालो पंच शुभ ज्ञान । मतिश्रुत अवधि मनः पर्यय ए, नरेसुआ, केवल बोध निधान ॥१९ वण सै छत्रीस भेद ए नरेसुआ, मतिज्ञान तणां होय ।। पंचवीस भेदे श्रुत ज्ञान ए नरेसुआ, षटविध अवधि जोय ।।२० ऋजु विपुल मति नाम ए, नरेसुआ, मनपर्यय भेद दोय । केवल ज्ञान एक निर्मलो ए, नरेसुआ, ज्ञान तो ले नहीं कोय ।।२१ पंच महाव्रत समिति पंच ए, नरेसुआ, तीन गुपति पवित्र । यतीवर ते सदा धरे ए, नरेसुआ, तेरे भेदे चारित्र ॥२२ सर्वथा जीव दया पालो ए, नरेसुआ, सर्वदा सत्य विशाल । सर्वदा अचौर्य व्रत भलो ए, नरेसुआ, ब्रह्मचर्य गुणमाल ॥२३ . आकिंचन निःस्पृहपणे ए, नरेसुआ, पंच महाव्रत जेह । ईर्या भाषा एषणा समिति ए, नरेसुआ, आदान निक्षेप प्रतिष्ठापन तेह ॥२४ ईर्या समिति जुगमात्र जोइ ए, नरेसुआ, भापा समिति बोले सत्य । . दोष त्राणु थी बेगला ए, नरेसुआ, एषणा समिति जीव हित ।।२५ आदान निक्षेपण यत्ने करो ए, नरेसुआ, लेओ मूको यत्ने वस्तु । जीव जोइ मल नीत चव्यो ए, नरेसुआ, प्रतिष्ठापना ते प्रशस्त ॥२५ मन वचन काया तणी ए, नरेसुआ, परिहरो दुर्व्यापार । त्रण गुप्ति सदा र्धार ए, नरेसुआ, चारित्र तेर प्रकार ॥२७ दर्शन जान चारित्र रत्न ए, नरेसुआ, पालो मुनि व्यवहार । भक्ति सुश्रूषा तेहनो करो ए, नरेसुआ, भावना भावे ब्रह्मचार ॥२८ निज योग्य जे दर्शन ए, नरेसुआ, आपण जोग्य जे ज्ञान । जेह निज योग्य होवे व्रत ए, नरेसुआ, जत्न करो सदा तेह ॥२९ शुद्ध बुद्धमय निर्मलो ए, नरेसुआ, आत्म रुचि दर्शन। आपें आप सदा धरो रुचि ए, नरेसुआ, ते निश्चय दृष्टि गुण ॥३० निर्विकल्प निज वेदन ए, नरेसुआ, निश्चय ज्ञान गुण होय । आपे आप वेदे सदा ए, नरेसुआ, अवर न वेदे कोय ॥३१ सर्व परिग्रह थी वेगलो ए, नरेसुआ, उज्ज्वल सहज स्वरूप । आपें आप स्थिति जे करि ए, नरेसुआ, ते निश्चय चारित्र रूप ॥३२ निश्चय रत्नत्रय कारण ए, नरेसुआ, पेहलो को विवहार। विवहार विना निश्चय नहीं ए, नरेसुआ, व्यवहार निश्चय साधार ॥३३ निश्चय रत्नत्रय होह ए, नरेसुआ, जो होइ समता भाव। तेह भणी समता धरो ए, नरेसुआ, भव-सागर जे नाव ॥३४ राग द्वेष सहु परिहरि ए, नरेसुआ, शत्रु-मित्र सम जोय । हेम लोह त्रण रत्न ए, नरेसुबा, सुख-दुख सम जोय ॥३५
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