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श्रावकाचार-संग्रह
ढाल नरेसुआनी
तप द्वादश इम वर्णवीए, नरेसुआ, हवे कहूँ त्रिरत्न । दर्शन ज्ञान चारित्र मय ए, नरेसुआ. सदा कीजे तस यत्न ॥ १ त्रिहु भेदे ते सांभलो ए, नरेसुआ, विधान भेद विवहार । निश्चय रत्नत्रय निर्मलो ए, नरेसुआ, ते उतारे भवपार ॥२ भाद्रव माघ चैत्र मास ए, नरेसुआ, श्वेत द्वादशो यस दीस। देव पूजो जात्रा दान देई ए, नरेसुआ, प्रासुक शुद्ध लीजे अन्न ||३ एक भक्त धारण करी ए, नरेसुआ, लीजे त्रण उपवास । गुरु साक्षे पोसा सहित ए, नरेसुआ, कीजो जागरण उल्हास ॥४ दर्शन ज्ञान चारित्रतणा ए, नरेसुआ, हेम आदि त्रण जंत्र । विधि अनुक्रमें मंडाविए, नरेसुआ, लिखी ते निज निज मन्त ॥५ निःशंक आदि अष्ट अंग ए नरेसुआ, संवेग गुण पवित्र । अष्ट मन्त्र तिहां लिखीइ ए, नरेसुआ, पूजो दर्शन जन्त्र ॥६ व्यंजनोजित आदि अष्ट गुण ए, नरेसुआ, पूजो निर्मल ज्ञान । तेर भेदे चारित्र गुण ए, नरेसुआ, पूजो यन्त्र अभिधान ॥७ देव आगम गुरु पूजी ने ए, नरेसुआ, स्नपन करी वर जंत्र । विधि सहित विवेक पणें ए, नरेसुआ, अष्ट द्रव्य पवित्र ॥८ जल गंध अक्षत पुष्प वर ए, नरेसुआ, दीप धूप फल सार ।
अ उतारी जाप स्तवन भणी ए, नरेसुआ, जयमाल भक्ति नमस्कार ॥९ तेरसि चोदसि पूनम दिन ए, नरेसुआ, दिन प्रति त्रण काल । बहु भव्य जन सुं परिवर्या ए, नरेसुआ, जंत्र पूजो गुण माल ॥ १० प्रभाते दर्शन पूजा करो ए, नरेसुआ, मध्याह्न समय पूजो ज्ञान । अपराह्न वेला चारित्र पूजो ए, नरेसुआ, कीजे वाजित्र नृत्य गान ॥ ११ त्रण दिन इम पूजीइ ए, नरेसुआ, सुणो, कथा जिनवाणि । पारणें स्नपन पूजा करी ए, नरेसुआ, खमावी देव गुरु जाणि ॥ १२ साधर्मी साथे जिन घर आवी ए, नरेसुआ, पात्र दीजे शुभ दान । पछें पारणं कीजिए, नरेसुआ, रत्नत्रय कीजे विधान ||१३ त्रणवार इस कीजिए, नरेसुआ, वरस त्रण पर्यन्त ।
अथवा निज शक्ति करो ए, नरेसुआ, सदा पाक्षिक जन सन्त ॥ १४ नैष्ठिक श्रावक तम्हों सुणो ए, नरेसुआ, भावना भावो व्यवहार । नत्र तणी निर्मली ए, नरेसुआ, भावना पुण्य भवतार ।।१५ वैश्रमण भूपें कीयो ए, नरेसुआ, रत्नत्रय विधान । श्रीजे भवे तीर्थंकर हुओ ए, नरेसुआ, मल्लिनाथ जिन भान ॥ १६ निःशंकित निःकंक्षित अंग ए, नरेसुआ, निर्विचिकित्सा अमूढ़ । पगूहन स्थिति करण ए, नरेसुआ, वात्सल्य प्रभावना प्रौढ़ ॥१७
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