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श्रावकाचार-संग्रह उक्त रचनायों पर दृष्टिपात करने से यह सहज ही ज्ञात होता है कि पं० दौलतराम जी चारों ही अनुयोगोंके अच्छे ज्ञाता थे।
पं० दौलतराम जीका जन्म वसवां ( राजस्थान ) में सं० १७४९ के आषाढ़ सुदी १४ को हुआ। इनके पितामहका नाम घासीराम और पिताका नाम आनन्दराम था। जाति खंडेलवाल
और गोत्र काशलीवाल था। इनका अध्ययन कहाँ और किससे हुआ, इसका कोई उल्लेख उन्होंने अपनी रचनाओंमें कहीं नहीं किया है। पर इनकी रचनाओंको देखते हुए ये प्राकृत और संस्कृतके अच्छे ज्ञाता थे, यह सहजमें ही ज्ञात हो जाता है । तथा इनके पिता यतः राज्यके उच्च पद पर आसीन रहे हैं, अतः इनकी शिक्षा-दीक्षा भी उभय-भाषा विशेषज्ञ विद्वानोंके द्वारा हुई होगी, ऐसा निश्चित है। चारों अनुयोगोंका ज्ञान इनका स्वोपार्जित प्रतीत होता है।
समीक्षा पद्म कवि कृत श्रावकाचार और दोनों क्रिया-कोषोंमें क्या समता और क्या विशेषता है इसका कुछ यहां विचार किया जाता है
जिस प्रकार पदम कविने अपने श्रावकाचारको भूमिकामें समवशरणमें ले जाकर श्रेणिकके द्वारा गौतम गणवरसे श्रावक धर्मके जाननेकी इच्छा प्रकट की, उसी प्रकार किशनसिंह जीने भी कराई है, किन्तु दौलतराम जीने ऐसा न करके मंगलाचरणके पश्चात् वेपन क्रियाओंका वर्णन यह कहकर प्रारम्भ किया है कि गृहस्थको अनेक क्रियाओंमें अपन क्रियाएँ प्रधान हैं।
दोनों ही क्रिया कोषोंमें त्रेपन क्रियाओंकी नाम वाली एक ही गाथा 'उक्तं च' कहकर लिखी है। वे वेपन क्रियाएँ इस प्रकार हैं-मूलगुण ८, व्रत १२, तप १२, समभाव १, श्रावक प्रतिमा ११, दान ४, जलगालन १, अनस्तमित व्रत (रात्रि भोजन त्याग) १, दर्शन १, ज्ञान १, चारित्र १. = ५३ ।
प्रस्तुत संग्रहमें निवद्ध तीनों ही ग्रन्थकारोंने वेपन क्रियाओंकी मुख्यतासे ही श्रावकके आचारका वर्णन किया है इसके पूर्व श्री राजमल जीने अपनी लाटी संहितामें भी उक्तंच करके त्रेपन क्रियाओंके नाम कली उसी गाथाका उल्लेख किया है जिसे कि उक्त दोनों क्रियाकोष कारों ने उद्धृत किया है।
पदम कविने आगे कहे जानेवाले विषयका निर्देश पूर्व कथनके उपसंहारके साथ छन्द में ही कर दिया है. किन्तु किशनसिंह जी ने उसके साथ वर्ण्य विषय का निर्देक्ष पृथक् शीर्षक देकरके किया है, जिससे पाठक को आगे वर्णन किये जानेवाले विषय का बोध सरलता से हो जाता है । दौलतराम जीने शीर्षक नहीं दिये हैं।
___ भक्ष्य-अमक्ष्य वस्तुओंकी काल-मर्यादाका निर्देश पदम कवि और किशनसिंह जीने पूर्वागत गाथाओंको देकर सप्रमाण वर्णन किया है, किन्तु दौलतरामजीने उक्त वर्णन करते हुए भी प्रमाण उद्धृत नहीं किये हैं।
पदम कविने गृहीत मिथ्यात्वके पांचों भेदोंका जितना स्पष्ट और विस्तृत वर्णन किय है, वैसा शेष दो क्रिया कोषकारोंने नहीं किया है।
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