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________________ प्रस्तावना यह क्रियाकोष लगभग ५० वर्ष पूर्व सूरतसे प्रकाशित हुआ था जो अब अप्राप्य है। श्री किशनसिंह जीने उक्तं च करके १४ श्लोक और गाथाएँ उद्धृत की हैं। जिनमेंसे २ श्लोक प्रश्नोत्तर श्रावकाचारके हैं, १ श्लोक उमास्वाति श्रावकाचारका है तथा एक गाथा त्रिलोकसार और एक गाथा द्रव्य संग्रहसे ली गयी है। इन्होंने अपने गुरु आदिका कोई उल्लेख नहीं किया है । इससे ज्ञात होता है कि इनका श्रावकाचार सम्बन्धी ज्ञान स्वयं के शास्त्र-स्वाध्यायजनित था। अपने समयमें प्रचलित मिथ्यात्वी व्रतों और कुरीतियोका वर्णन कर उनके त्यागका प्रभावक वर्णन दौलतरामजीका परिचय और समय प्रस्तुत संग्रह में तीसरा हिन्दी छन्दोबद्ध श्रावकाचार श्री दौलत राम जी का है जिसे उन्होंने स्वयं क्रियाकोष नाम दिया है । ( देखो पृ० २४०) इन्होंने इस क्रियाकोष की रचना उदयपुर में सं० १७९५ के भादों सुदी बारस मंगलवार को पूर्ण की हे ! यथा संवत सत्रासै पच्याण्णव, भादव सुदि बारस तिथि जाणव । मंगलवार उदै पुर माह, पूरन कीनी संसय नाहै ॥ ( देखो पृ० ३८९) ___ श्री दौलत राम जी ने श्री किसन सिंह जी के क्रियाकोष की रचना ( सं० १७८४ ) के ११ वर्ष पश्चात् ( सं० १७९५ ) अपने क्रियाकोष को रचा है। इन्होंने अपनी रचना का परिमाण नहीं दिया है और न रचे गये छन्दों के नाम ही दिये हैं। फिर भी हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध दोडा. चौपाई, बेसरी छन्द, जोगीरासा, इकतीसा सवैया, चाल छन्द, कवित्त, सवैया तेईसा और सोरठा छन्दों में इस क्रिया कोष को रचना की है। पं० दौलतराम जोने अपने इस ग्रन्थमें उक्तं च करके कुछ गाथाएँ और श्लोक दिये हैं जिनकी संख्या ६ है । जिनमें से मयमूढमणायदणं यह गाथा रयणसार की है, ३ श्लोक ज्ञानार्णव के हैं और २ लोक प्रश्नोत्तर श्रावकाचार के हैं। डॉ० कस्तूरचन्द्र जी काशलीवालने इनकी १८ रचनाओंका उल्लेख किया है, और उन्हें तीन भागों में विभाजित किया है १. मौलिक रचनाएँ, २. अनूदित रचनाएँ और टब्वा-टीकाएँ। मौलिक रचनाएँ आठ उपलब्ध हैं। यथा-१. क्रियाकोष, २. जीवन्धर चरित, ३. अध्यात्मा बारह खड़ी, ४. विवेक विलास, ५. श्रेणिक चरित, ६. श्रीपाल चरित, ७. चौवीस दण्डक, और सिद्धपूजाष्टक में सभी रचनाएँ छन्दोबद्ध है। ____अनूदित रचनाएं सात उपलब्ध है। यथा-१. पुण्यास्रवकथाकोष, २. पद्मपुराण, ३. आदिपुराण, ४. हरिवंश पुराण, ५. पुरुषार्थ सिद्धथुपाय, ६. परमात्म प्रकाश, और ७ सारसमुच्चय । ये सभी ढूंढारी भाषा में गद्य अनुवाद हैं। तीसरे प्रकार की रचनाओं में-१. तत्त्वार्थसूत्र टब्बा-टीका, २. वसुनन्दि श्रावकाचार टब्बा-टीका और ३. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा टब्बा-टीका ये तीन उपलब्ध हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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