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श्रावकाचार-संग्रह उन छब्बीस रासोमेंसे कुछ प्रमुख रासोंके नाम इस प्रकार हैं-१. चौपाई, २. दोहा, ३. भास रास, ४. मालंतडानी ढाल, ५. जसोधरनी भास, ६. वस्तु छन्द, ७. अविकानी भास, ८. सहीनी ढाल, २. वीनतीनी भास, १०. भद्रबाहुनी ढाल, ११. हेलिनी ढाल, १२. ढाल, १३. हिंडोलानी ढाल, १४. नरेसुआनी ढाल, १५. गुणराजनी ढाल, १६. वैरागी भास, १७. विणजारानी भास, १८. सहेलडीनी ढाल, १९. सहेलीनी ढाल, २०. रसना देवीनी ढाल, २१. आनन्दानी ढाल, २२. रासनी ढाल ।
उक्त ढालोंमें दोहा, चौपाई और वस्तु छन्दको छोड़कर प्रायः सभी ढालें गुजरात और राजस्थानके सीमावर्ती प्रदेश में प्रचलित रही हैं अतः प्रस्तुत श्रावकाचारकी भाषा गुजराती मिश्रित राजस्थानी है ढाल, रास और छन्द ये तीनों एकार्थवाचक हैं।
पदम कविने अपने माता-पिताके नामका कोई उल्लेख नहीं किया। केवल अपनेको वाग्वर (वागर) देशके सापुर (शाहपुर) नगर वर्ती श्री आदिनाथके मन्दिरका और नन्दी संघ वाले हुंबड़ जाति-खदिर गोत्री और विरीत कुल का अवतंस कहा है। (देखो पृ० ११० पद्य ४९-५२)
पदम कविका परिचय 'राजस्थानके जैन सन्त, व्यक्तित्व एवं कृतित्व' नामक ग्रन्थमें नहीं दिया गया है। इससे ज्ञात होता है कि उम्म कविने प्रस्तुत श्रावकाचारके सिवाय अन्य किसी ग्रन्थकी रचना नहीं की है। इसको एकमात्र प्रति ऐलक पन्नालाल दि. जैन सरस्वती भवन, ब्यावरसे प्राप्त हुई । अन्य शास्त्र भण्डारोंकी ग्रन्थ सूचियोंमें इसका नाम दृष्टिगोचर नहीं हुआ।
किशनसिंह जीका परिचय और समय प्रस्तुत संग्रहमें दूसरा हिन्दी छन्दोबद्ध श्रावकाचार श्री किशनसिंह जी का है जिसे उन्होंने स्वयं क्रियाकोष नामसे उल्लेखित किया है। (देखें अन्तिम पुष्पिका, पृ० २३९) इन्होंने अपने क्रियाकोषको सं० १७८७ के भादों सुदी पूनमको ढूंढाहर देश (वर्तमान राजस्थान) के सांगानेर नगरमें पूर्ण किया है।
(देखो पृ० २३८ पद्य ९१) ये रामपुराके निवासी थे । रामपुरा उणियारा-टोंकके समीप है तथा जो आजकल अलीगढ़ के नामसे प्रसिद्ध है। किशनसिंहजीके पिताका नाम सुखदेव जी था उन्होंने रामपुरामें एक विशाल मन्दिर बनवाया, जिसकी नींव सं० १७३१ में पड़ी थी। ये दो भाई थे छोटे भाईका नाम आनन्द सिंह था। इनकी जाति खण्डेलवाल और गोत्र पाटनी था। किशनसिंह जी रामपुरासे आकर सांगानेर रहने लगे थे। इनकी अन्य १०. रचनाएँ और भी उपलब्ध हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं
१. णमोकार रास, २. चौबीस दण्डक, ३. पुण्यास्रव कथाकोष, ४. भद्रबाहु चरित, लब्धि विधान कथा, ६. निर्वाणकाण्ड भाषा, ७. चतुर्विशति स्तुति, ८. चेतन गीत, ९. चेतन लोरी और १०. पद संग्रह।
प्रस्तुत क्रियाकोषका ग्रन्थ परिमाण २९०० श्लोक प्रमाण है। (देखो पृ० २३८, पद्य ९४) इस क्रियाकोष की रचना १. हिन्दीके चौपाई, २. पद्धड़ी, ३. सोरठा, ४. अडिल्ल, ५. गीता, ६. कुण्डलियां, ७. मरहठा, ८. छप्पय, ९. तेईसा, १७. इकतीसा सवैया और तथा त्रिभंगीमें तथा संस्कृतके त्रोटक, द्रुत विलम्बित और भुजंगप्रयात छन्दोंमें की है। इन्होंने अपनी अन्तिम प्रशस्ति में इनकी छन्द संख्या भी दी है।
(देखो प० २३८)
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