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श्रावकाचार-संग्रह
नारी तणां कटाक्ष-वाणे जे नवि मेदिया ए। ते सुभट माहें दक्ष, जिणे शील न छेदिया ए ॥३६ नारी तणा अंगोपांग, तीक्ष्ण बाण जे नवि हण्यां ए। ते सुमट माहें उत्तुंग, ते धन्य पुण्यवंत भण्यां ए ॥३७ दूरि गज वाघ सिंघ, निज हस्तें नर वश करे ए। ते हवा भूपति बलवंत, विरला जे शील नवि हरे ए ॥३८ दुर्धर काम कहे वाय, पायो त्रैलोक्य माहे फिरे ए। इन्द्र फणीन्द्र नरराय, कामें सह विह्वल कोया ए॥३९ सबल शूर जे धीर, काम शत्रु जेणें जीतिया ए। ते नर गुण गंभीर, नारी रूपें नहीं छीपिया ए॥४० सुख शय्यासन चीर, ताम्बूल पुष्प माला गंध ए। दांतुन स्नान शरीर, सरार्गे शीलदोष बंधे ए॥४१ निज अंग मंजण जेह, बहु राग जेणें ऊपजे ए। चंदण धूपावास देह, सबल काम जेणें संपजे ए॥४२ एह आदे जे जे वस्तु, तीव्र काम कारी कही ए। ते द्रव्य छोड़ो समस्त, शील यत्न करो सही ए॥४३ कूबड़ी काली कुरूप, नेत्र नासिकाथी वेगली ए। बीभत्स दीसे बहुरूपं, हस्त पाद छिन्न दूबली ए॥४४ एहवी देखि कुनारि, स्त्री रागे मूढ नयर नडयो ए। पापी मदन विकार, कामी नर तिहां पडयो ए ४५ करे मास उपवास, पारणे केवल लेई नीर ए। पामी नारी तणों पास, ततक्षण पड़े ते धीर ए ४६ मणंता जे अंग इग्यार, ध्यानी मुनि वैरागिया ए। सहि नारी संग असार, शील वेगें तिणे त्यागिया ए ॥४७ हुआ रुद्र जे इग्यार, माता-पिता वली तेह तजा ए। थया भ्रष्ट चारित्र भार, विषम संग लहीं आपका ए॥४८ एह आर्दै नर नार, काम रोगे जे घणुं रुल्या ए। जिन आगम मझार, ते तम्हो सहु सांभल्या ए ४९ शील तणे प्रभाव, सुर तणां आसन कंपिया ए। इन्द्र आदि देवराय, शील धारौ गुण जंपिया ए ॥५० क्रूर वाघ थाइ छाग, सिंघ थाइ भृग समो ए। पुष्पमाल थाइ नाग, दुर्धर गज भृगाल समो ए॥५१ अग्नि फीटी जल होइ, विषम विष अमृत थाइ ए। शत्रु सहु होइ मित्र, समुद्र ते गोष्पद थाइ ए ॥५२ कामधेनु कल्प वृक्ष, शील चिन्ता मणि सम कही ए। मन वांछित ते लहें सौख्य, शील मोले अवर को नहीं ए ॥५३
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