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पदम-कृत श्रावकाचार
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मैथुन करे जे मूढ, दिन प्रति बहुवार ए। ते पामें पाव प्रौढ, सहे ते बहु दुःख भार ए॥१८. काम-अनल महादाह, स्त्री सेवे घणुं बले ए। तेले जिम थाइ उछाह, संतोष नीर वेगे टले ए॥१९ इम जाणि भव्य जीव, काम सेवा दूरें त्यजो ए। मनें धरो संतोष, दिव्य ब्रह्मवत सदा भजो ए॥२० दृष्टि विष नागिनि जिम्म, देखी वेगे मानव मरे ए। देखी रागें नारि तिम्म, दूर थकी नर मन हरे ए ॥२१ नर तणों दृढ ब्रह्म व्रत, नारी संगे वेग जाइए। अग्निताप-संयुक्त, पारो जिम दहं दिस थाइ ए ॥२२ जिन भवनें एक वार, जिनदत्त श्रेष्ठि गयो ए। देखो नारी चित्राकार, दृढ़ मन पण विह्वल थयो ए ॥२३ संच्यो संठे कालकूट, विष वेदना करे नहीं ए। तिणें नारी जब दृष्ट, भ्रष्ट व्रत थयो सही ए ॥२४ सांपणि समी विकराल, स्परशी दुख देइ घणुए। राग मूकी विष झाल, शील जीवी हरे नर तणुए ।२५ वाघ सिंघ तणे वासि, सर्प समीप वसो रूरू ए। पापिणी नारी ताणें वास, साधु रहियों सदा दूरू ए ॥२६ तालगें नर मोटो होइ जालगें नारी थी वेगलो ए।। जद नारी नेडो सोइ, तष हीणों नार कसमलो ए॥२७ जिम मांगे रंक अन्न, दीन पणे याचना करे ए। कामें व्याप्यो जब मन्न, तब नारी शील धनं हरे ए॥२८ सर्वथा नारी करो त्याग, रागदृष्टि दूरे करो ए। जिणें न होइ तुम सो भाग, वैरागभावे परि हरो ए ॥२९ नारी अंग सिणगार, रूप-निरीक्षण नवि कीजिए ए। देखि स्त्रीरूप अंगार, पुरुष पतंग प्राणी त्यजो ए॥३० स्त्री आभरण झंकार, रागकारी शब्द त्यजो ए। मदन पामे विकार, महुअर नार्दै सांप सज ए॥३१ स्त्री-संयोगे हुइ राग, वीर्यहानि मल विस्तरि ए। पाप तणों होइ भाग, पापें किम शिव संचरि ए ॥३२ स्त्री साथे हास्य विनोद, कौतुक क्रीडा जे करे ए। पामें मदन प्रमोद, भांड वचन वली उचरे ए॥३३ स्पयें छोड़ो नारी अंग, नयणे रूप न देखीइ ए। करणें त्यजो शब्द संग रंग मन नवि पेखीइ ए ॥३४ जिम तिम करीय उपाय, नारी थकी दूरे रहो ए। मन वच करी वश काम, शील व्रत निर्मल लहो ए॥३५
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