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श्रावकाचार-संग्रह
आठमि चौदसि जाण, जे मूढा मैथुन करे, साहेलड़ी • ते नर पशु समान, पाप-फल नरकें अवतरें, साहेलड़ी ० ॥३६ आठमि चोदसि तिथि पर्व, निर्मल शील जे ध्याय, साहेलड़ी • ते उत्तम गुणवंत, पुण्य फलें स्वर्गे जाय, साहेलड़ी ० ||३७ पोसा तर्फे दिन भव्य, शरीर - सिणगार न कीजिये, साहेलड़ी • स्नान विलेपन आभरण, सुगंध पुष्प न वि लीजिये, साहेलड़ी० ॥३८ उत्तम प्रतिमावंत, पोसह घरो नियम- सहित, साहेलड़ी ०
उत्तम मध्यम अंतर नहीं ए, अवर विधें जलध रहित, साहेलड़ी० ॥३९ शक्ति होय जेहनें हीन, ते करें कांजी रूक्ष आहार, साहेलड़ी ० एक स्थान एक भक्त, जघन्य व्रत विधि धार, साहेलड़ी ० ॥४० करें नहीं जे उपवास, पंच इन्द्री अंग जे पोसें, साहेलड़ी ०
ते लंपट करे पाप, भव-भव दुख ते सहें, साहेलड़ी० ॥ ४१ परवश पड़ियो जीव, लंघन कष्ट करे घणुं, साहेलड़ी • स्वाधीन पणें धर्मकाज, करे नहीं ते मूढ़ पणुं, साहेलड़ी० ॥४२ प्रगट करि निज शक्ति, तप व्रत शुभ आचरो, साहेलड़ो • तप चिन्तामणि कल्पवृक्ष, सौख्य जिम मोक्ष वरो, साहेलड़ी० ||४३ निर्दोष कीजे तप, पंच अतीचार तजो, साहेलड़ी •
पोसह तणां अतिपात, पंच पाप मन तजो, साहेलड़ी• ॥४४
जो या विणजे द्रव्य, झणी ववो भूमि ऊपर, साहेलड़ी ० नव लीजे उपकर्ण, विवण पूंजी जोइ, साहेलड़ी० ॥४५ संथारा कीजे यत्न, आदर करो आवश्यक तणो, साहेलड़ी ० मन वच करि सावधान, व्रत संभारो आपणों, साहेलड़ी० ॥ ४६ इणि परे दोष रहित, पोसा तणी विधि पालीइए, साहेलड़ी • चौथी प्रतिमा उत्तुंग, मन वचन कायाइ संभालीए, साहेलड़ी० ॥४७ संक्षेपे कह्यो विचार, पोसह तणो मैं ऊजलो, साहेलड़ी० पोसह तणें फल भव्य, सोलमें स्वर्गे जाइ निर्मलो, साहेलडी० ॥४८ इन्द्र नरेन्द्र पद होइ, मन वांछित सुख पामोये, साहेलड़ी० लहे चक्री जिन पद, अनुक्रमें मोक्ष पामीये, साहेलड़ी० ॥ ४९ सचित्त वस्तुनो त्याग, पंचम प्रतिमा सांभलो, साहेलड़ी० संक्षेपें कहुँ सार, कृपा कीजे भेद ऊजलो, साहेलड़ी ॥५० हरित कंद फल फूल, पत्र प्रवाल त्वक् सचित्त, साहेलड़ी० अप्रासुक जल धान, तेह तणी कीजें निवृत्त, साहेलड़ी ० ॥५१ आर्द्रक आदें कंद, आम्र केल आदि फल, साहेलड़ी ० नागवल्ली आदि पत्र, अप्रासुक जल शीतल, साहेलड़ी० ॥५२ तरुतणी नीली छाल, नीलमा आदि जे कुसुम, साहेलड़ी० गोधूम चणका ज्वार, बिरहाली आदि बीज उत्तम, साहेलड़ी० ||५३
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