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पदम-कृत श्रीवकाचार
दशलक्षण जिनधर्म-चैत्य एकादश अंग, साहेलड़ी० अनुप्रेक्षा वार सुतप, तेर क्रिया व्रत रंग, साहेलड़ी० ॥१८ .. चितो चोद गुणस्थान, प्रमाद पनर प्रजालिये, साहेलड़ी० भावना भावो शुभ सोल, सत्तर संजम पालिये, साहेलड़ी० ॥१९ प्रमाद साढ़ा सात्रीस, लक्ष चौरासी मुनिगुण, साहेलड़ी० चरचा कीजे माहो मांहि, समता भावे मतिनिपुण, साहेलड़ी० ॥२० अष्टमी तणों उपवास, अष्टकर्म तणुं हारक, साहेलड़ी० आपे सिद्धगुण अष्ट, अष्टमी भूमि सुखकारक, साहेलड़ी० ॥२१ चतुर्दशी उपवाम, केवलज्ञान प्रकाशक, साहेलड़ो० चोदमु देइ गुणस्थान, चतुर्गतिना दुखनाशक, साहेलड़ी० ॥२२ आठमि चौदसि उपवास, नीर विना सदा जे करें, साहेलड़ी० ते पुण्य होइ अपार, पाप दुष्कर्म निर्जरें, साहेलड़ी० ॥२३ उष्ण लेइ जो नीर, तो आठमो भाग जाइ, साहेलड़ी० कसाल्यां द्रव्य जल मिश्रा, तो उपवास हीण थाइ, साहेलड़ी० ॥२४ आठम चौदस उपवास, अखंड पणे जे आचरें, साहेलड़ी० सदा पोसा सहित, सदा पंच इन्द्रो मन वसि करें, साहेलड़ी० ॥२५ सावद्य-सहित उपवास, लीपणों जिम धूल ऊपर, साहेलड़ी. अथवा जिम गजस्नान, नाखे धूलि सूढ भर, साहेलड़ी० ॥२६ सावद्य-रहित उपवास, पुण्यकारी कर्म-निर्जरे, साहेलड़ी. सहित सावध उपवास, कष्टकारी कर्म अनुसरे, साहेलड़ी० ॥२७ निःपातन कुदाल, जालकर्म तरु मूल खणे, साहेलड़ी. सो तप वज्र समान, कठिण कर्म पर्वत हणे, साहेलड़ी० ॥२८ सोल प्रहर नु मान, उत्तम पोसह जिण भण्यो, साहेलड़ी. धारणां दिन मध्यान, पारणे मध्यान लगे सुणो, साहेलड़ी० ॥२९ धारणे पारणें एक बार, भोजन पानी साथे सही, साहेलड़ी. वार पहर ते मध्य, एक दिन वे रात्रि कही, साहेलड़ी० ॥३० दिन एक रात्रि एक, जघन्य पोसो ते कहो, साहेलड़ी० पोसो नियम सहित, निजशक्ति मन आणीये, साहेलड़ी० ॥३१ पारणे कीजे जिनपूज, पात्रदान वली दीजिये, साहेलड़ी० निज साधर्मी जिन साथ, भोजन सूवाच्छल्य कीजिये, साहेलड़ी० ॥३२ निज पर्व उपवास, मूलवत जे आचरे, साहेलड़ी. जीवितव्य तेह प्रमाण, अखंड नियम जे अनुसरे, साहेलड़ी० ॥३३ इम जाणिय तम्हो भव्य, मूलव्रत सदा धरो, साहेलड़ी. निज शक्ति अनुसार, उत्तर तप बहु करो, साहेलड़ी० ॥३४ तप ए निर्मल नीर, पाप-कर्दम-प्रक्षालक, साहेलड़ी. तप अग्नि जीव सुवर्ण, कर्म-कलंक प्रजासक, साहेलड़ी० ॥३५
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